Book Title: Jinabhashita 2006 01 02 Author(s): Ratanchand Jain Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra View full book textPage 6
________________ अपने आपको जैन कहलानेवाले उन भाइयों के द्वारा बार-बार शिकायतें करने एवं राजनैतिक दबाव बनाने के कारण राज्य सरकार ने भारी पुलिस बल सहित जिलाधीश को क्षेत्र पर निर्माणकार्य एवं मूर्ति का स्थानांतरण रोक देने के लिए भेजा। जिन दिनों में बड़े बाबा की मूर्ति का स्थानांतरण प्रस्तावित था, उन्हीं दिनों में क्षेत्र पर लगभग ८०० की संख्या में पुलिस फोर्स तैनात करवा दी गई, किन्तु पू. आचार्यसंघ, ब्रह्मचारीगण, ब्रह्मचारिणी बहिनों एवं श्रद्धालु श्रावकों के अहिंसाबल से हिंसा पर आधारित पलिस बल हार गया। संपर्ण कंडलपर की पहाडी पर धर्म श्रद्धाल जमा थे। बडे बाब के मंदिर पर जाने के सभी मार्गों पर ब्रह्मचारी भैयाओं एवं ब्रह्मचारिणी बहिनों के समूहों ने पुलिस को उधर जाने से लगातार तीन दिन तक रोके रखा। तीन दिन तक भोजन-पानी की चिंता किए बिना सभी मंत्र का जाप करते हुए अपने स्थान पर डटे रहे। पुलिस उन अहिंसक वृत्तियों पर शस्त्रबल का प्रयोग करने का साहस नहीं जुटा सकी। तीन दिनों में उन तथाकथित जैन बंधुओं की कृपा से कुंडलपुर दि. जैन तीर्थ क्षेत्र को पुलिस छावनी का रूप प्राप्त हो गया। किन्तु धर्म की सदा विजय होती है और बड़े बाबा की वह सातिशय मूर्ति दर्शनार्थी भव्य जीवों के पुण्योदय से दिनांक १७ जनवरी के शुभ दिन नवनिर्मित मंदिर के गर्भगृह में सुरक्षित आकर विराजमान हो गई। शंकालु व्यक्तियों के मन में बड़े बाबा की मूर्ति के स्थानांतरण के प्रकरण को लेकर अनेक प्रकार की आशंकाएँ उत्पन्न हो रही थीं। किन्तु जिस सुंदरता और सहजता से बड़े बाबा नवीन मंदिर में आकर विराजमान हुए, उससे मुझको तो यह लगता है कि स्वयं बड़े बाबा दर्शनार्थियों की प्रार्थना सुनकर उस जर्जर छोटे स्थान से उठकर इस विशाल नवीन मंदिर में आना चाहते थे। छोटे बाबा आचार्यश्री को अवश्य ही बड़े बाबा की ओर से ऐसा संकेत भावनात्मक रूप में प्राप्त हुआ होगा, तभी केवल एक आचार्यश्री ही बड़े बाबा की मूर्ति के नवीन मंदिर में निर्विघ्न स्थानांतरण के विषय में सर्वाधिक पूर्णतः आश्वस्त थे। इस संबंध में प. आचार्य श्री के नि:शंक विश्वास का आधार बडे बाबा रहे और हम सब श्रद्धालजन के विश्वास का आधार प. आचार्यश्री रहे। मैं तो कहँगा कि बडे बाबा की मर्ति का यह सहज और निर्विघ्न स्थानांतरण सर्वाधिक अतिशयकारी घटना है, जो इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों पर 'कुंडलपुर के बड़े बाबा का अतिशय' के रूप में अंकित रहेगी। बड़े बाबा की मूर्ति को उस जर्जर अपर्याप्त स्थान से बाहर विशाल मंदिर के गर्भगृह में लानेवाले लोग तो निमित्त मात्र रहे, वस्तुत: तो बड़े बाबा को बड़े खुले स्थान पर देखने के लिए तरसती हुई श्रद्धालु जन-जन की भावनाएँ एवं उन भावनाओं को सही रूप में पढ़कर द्रवित हुए आचार्य श्री की आत्मशक्ति ही मूर्ति को नवीन मंदिर में ला पायी। बड़े बाबा के नवीन मंदिर में विराजमान होने के बाद लघु पंच-कल्याणक-प्रतिष्ठा, योग-मंडल-विधान आदि की क्रियाएँ संपन्न होने के बाद मूर्ति के इतिहास में प्रथम बार दिनांक १९ जनवरी को ऐसा महा मस्तकाभिषेक हुआ जिसको हजारों-हजार श्रद्धालु एक साथ देखकर भावविभोर हुए और अपने जीवन को धन्य माना। ___ पुरातत्त्व के संरक्षण की दुहाई देते हुए जो लोग उस प्राचीन जर्जर स्थान से बड़े बाबा की मूर्ति को स्थानांतरित नहीं किए जाने के पक्षधर हैं, मैं उनसे कहना चाहता हूँ कि संपूर्ण कुंडलपुर क्षेत्र में सर्वाधिक मूल्यवान पुरातात्त्विक संपत्ति तो बड़े बाबा की मूर्ति है। क्या इस सारभूत पुरातत्त्व की असुरक्षा के खतरे के मूल्य पर हमें भूकंपों के झटकों से जर्जर हुए उस अंधेरे छोटे स्थान वाले मंदिर को सुरक्षित रखने की मूढ़ता भरी भूल करना चाहिए? वस्तुतः आगे आने वाले सहस्राधिक वर्षों के लिए बड़े बाबा की मूर्ति की उस मूल्यवान् पुरातात्त्विक संपत्ति को संरक्षित कर हमने सच्चे अर्थ में पुरातत्त्व का संरक्षण किया है। साथ ही लाखों-लाख श्रद्धालु जैन बंधुओं को बड़े बाबा की सातिशय मूर्ति का सुविधापूर्वक दर्शन-पूजन करने का अवसर प्रदान किया है। मैं बड़े बाबा की मूर्ति के स्थानांतरण का विरोध करने वाले बंधुओं से आग्रहपूर्वक प्रार्थना करता हूँ कि वे एक बार कुंडलपुर आकर इस नवीन मंदिर में विराजे बड़े बाबा के दर्शन अवश्य करें। मैंने अनुभव किया और जो कोई भी बड़े बाबा के दर्शन करेगा वह अनुभव करेगा कि इस नवीन मंदिर के गर्भगृह की वेदी पर विराजित होने पर बड़े बाबा की सुंदरता, वीतरागता, सौम्यता और आकर्षण में मानो सहस्रगुनी वृद्धि हो गई है और उनके अतिशय में भी अवश्य उतनी ही वृद्धि हुई होगी। मूलचन्द लुहाड़िया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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