Book Title: Jinabhashita 2006 01 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 41
________________ करते हैं। हमारा मकसद यह कतई नहीं है। हमारी भावना तो | के रूप में अपनाने में शीघ्र आगे आयेगा। इस पर होने वाले अग्नि और विद्युतकायिक जीवों की महाहिंसा से बचने का | मूलखर्च को, सुकृत कार्य पर खर्च के सदृश समझेगा। हर प्रभावशाली और आसान विकल्प प्रस्तुत करने की है। । शहर का समाज, इस प्रवृत्ति पर अपना विशेष ध्यान देगा जीवनयापन में 'अपरिहार्य' महाहिंसा मानी जाने वाली | तथा एक समयबद्ध लक्ष्य निर्धारित करेगा। ऐसी आशा की प्रक्रिया से गृहस्थों को निजात दिलाने में साधु-समाज भी जाती है कि अग्निकायिक जीवों की रक्षा करने मे हर सुज्ञ अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है। उनको भी सौर- | श्रावक एक कदम आगे बढ़कर सोचेगा तथा पुण्य उपार्जन चल्हों के विभिन्न आगमिक बिन्दओं पर चिन्तन करके में व अहिंसक बनने मे प्रमाद नहीं करेगा। समाज के सामने सही प्रस्तुतीकरण करना चाहिए। हर पाठक 40,कमानी सेन्टर, द्वितीय मंजिल से अपेक्षा की जाती है कि वह संतों से इस पर विचार बिस्तुपुर, जमशेदपुर-83100 विमर्श करके, सौर-चूल्हों को परम्परागत चूल्हों के संपूरक जिनागम डॉ. वीरसागर जैन चिन्तन का आधार जिनागम, जीवन का आधार जिनागम। वह क्या चिन्तन वह क्या जीवन, जिसकी धरती नहीं जिनागम॥१॥ लेखन का आधार जिनागम, प्रवचन का आधार जिनागम। वह क्या लेखन, वह क्या प्रवचन, जिसकी धरती नहीं जिनागम ॥२॥ पर वे लेखन-वचन दूर हों, लाँघ रहे जो सतत जिनागम। ठोस धरातल एक जिनागम, परम सहायक एक जिनागम ॥ ५॥ होगा बड़ा अलौकिक चिन्तन, होगा बड़ा समर्पित जीवन। पर वे चिन्तन-मनन दूर हों, जिनकी धरती नहीं जिनागम ॥ ३॥ जो इसको समझें वे ज्ञानी, वरना तो सब मूढ़ अज्ञानी। ताते रोम-रोम में रखिए, महापौष्टि क सुधा जिनागम ॥६॥ होगी उत्तम लेखन-शैली, होगी उत्तम प्रवचन-शैली। जिसकी खूब प्रशंसा फैली, निकल जाए अभिनन्दन रैली॥४॥ सोच-समझ कर वचन उचरिये, पूर्वापर-विरोध से बचिए। अनेकान्तमय वस्तुरूप को, स्याद्वाद से कहे जिनागम ॥७॥ रीडर, जैन दर्शन विभाग एल. बी. एस. राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, दिल्ली जनवरी-फरवरी 2006 जिनभाषित / 39 www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only

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