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तात्पर्य
जिज्ञासा-समाधान
पं. रतनलाल बैनाड़ा प्रश्नकर्ताः हजारी लाल जी छीपीटोला, आगरा । जिज्ञासाः क्या अभव्य एवं दूरानुदूर भव्यों को
जिज्ञासा : क्या क्षायिक सम्यग्दर्शन किसी भी संहननधारी | अनादिअनंत बन्ध होता है तथा मोक्ष प्राप्त करने वाले जीवों जीव के होना संभव है?
को अनादिसान्त बंध होता है,ऐसा मानना उचित है। समाधानः श्री सन्तकम्मपजिया के अनुसार दर्शनमोह
समाधानः अभव्य एवं दूरानुदूर भव्य के सम्बन्ध में, को क्षपण करने की शक्ति केवल वज्रऋषभनाराच संहननधारी | | इस प्रकार समझ सकते हैंजीवों के ही पाई जाती है। प्रमाण इस प्रकार हैं-पृष्ठ ७९ पर | १. भव्य-अनादिसांतबंध (जिसको कभी अनंतानंत काल लिखा है, "पुणोवि अंतिम पंचसंहऽणाणि असंखेज गुणाणिं। | में मोक्ष प्राप्त होगा) कनकपाषाणवत्। कुदो? दुविह संजमगुणसेढिसी ससएणब्भहिंय मणंताणुबंधि |
२. अभव्य-अनादिअनंत बंध-अन्धपाषाणवत् (जिसमें विसंयोजयण गुणसेढिसीसयाणित्ति तिण्णिवि एगट्टुं काऊण
सोना है ही नहीं। निमित्त तो मिलेंगे पर सुधेरगा नहीं) णामकम्म संबंधीणं अट्ठावीसेण वा तीसेण वा भजिदमेतं होदि त्ति।किमटुंदंसणमोहक्खवणगुणसेढीण घेप्पदे? ण, तंखवण
३. अभव्य सम भव्य (दूरानुदूर भव्य) अनादि सान्त (तक्खणं) सत्ती एदेसि संहंडणाणं उदयसहिदजीवाणं णत्थि बंध-(क्योंकि उनके संसार नाश की शक्ति है। जयधवला त्ति अभिप्पयादो। विदियतदियमिदिमिदि दोण्हं संहडणाणं | २/९०)-कनकपाषाणवत् (जिसे कभी निमित्त नहीं मिलेंगे, उवसंत कसायगुणसेढि किं णमहिदा? ण, दंसणमोहक्खवणा अतः सुधेरगा नहीं) सत्तिविरहिदाणं उवसमसेढि चडणसत्तीण संभव विरोहो होदि त्ति अभिप्पाएण।"
१. भव्य में सम्यक्त्व प्राप्त करने की शक्ति है (कभी ___अर्थ: अंतिम पाँच संहनन असंख्यात गुने हैं। दो प्रकार | प्रकट होगी) के संयम गुणश्रेणि शीर्ष और उनसे गुणित अनंतानुबंधी २. अभव्य में सम्यक्त्व प्राप्त करने की शक्ति है ( प्रकट विसंयोजन गुणश्रेणिशीर्ष, इन तीनों को एकत्र करके नामकर्म | | करने की योग्यता ही नहीं) सम्बन्धी अट्ठाईस अथवा तीस प्रकृतिक स्थान से भाग देने ३. अभव्य सम भव्य में सम्यक्त्व प्राप्त करने की शक्ति पर होता है। दर्शनमोह क्षपक-गुणश्रेणि का ग्रहण क्यों नहीं | है (प्रकट करने की योग्यता तो है परन्तु निमित्त नहीं मिलेगा किया? इन संहननों के उदयसहित जीवों के दर्शनमोह को| क्योंकि सारे दूरानुदूर भव्य अनादिकाल से नित्यनिगोद में हैं क्षपण करने की शक्ति नहीं है। इस अभिप्राय से उसका और अनंतानंत काल तक नित्यनिगोद में रहेंगे। निकलने का ग्रहण नहीं किया। दूसरे और तीसरे संहनन वालों की उपशांत- | अवसर ही नहीं मिलेगा) कषाय गुणश्रेणि का ग्रहण क्यों नहीं किया? जिनके दर्शनमोह उदाहरण - को क्षपण करने की शक्ति का अभाव है, उनके उपशम १. भव्य -(पति सहित पुत्र प्रसव की योग्यता सहित श्रेणि पर चढ़ने की शक्ति के होने का विरोध है, इस अभिप्राय | स्त्री)- कभी पुत्र होगा। से नहीं किया।
२. अभव्य -(बांझ स्त्री के समान)-कभी पुत्र नहीं
होगा। इसी ग्रन्थ में पृष्ठ ७६ पर भी इस प्रकार लिखा है, 'इससे पाँचों संहननों के उदय वाले जीवों के दर्शनमोह को क्षपण
३. अभव्य सम भव्य (विधवा स्त्री के समान जिसके करने की शक्ति नहीं है। ऐसा कथित होता है।'
पुत्र प्रसव की योग्यता है)- पति न होने से कभी पुत्र उत्पन्न
| होने का प्रसंग ही नहीं आयेगा। संतकम्मपज्जिया प्राचीन प्रामाणिक ग्रन्थ है, अत: क्षायिक
जिज्ञासा : उपसर्ग कितने प्रकार के होते हैं? सम्यक्त्व के लिये प्रथम संहनन आवश्यक है, ऐसा ग्रहण
समाधान: हरिवंश पुराण १०/४२ में इस प्रकार कहा कर लेना चाहिये।
प्रश्नकर्ताः श्री रोशनलाल जी, देहली
जनवरी-फरवरी 2006 जिनभाषित / 43
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