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जिणवरचरणबुरूहं णमंति जे परम-भत्तिरायण। । समाधानः नित्यनिगोद के जीव अभी तक निगोद से ते जम्मवेल्लिमूलं, खणंति वरभावसत्थेण॥१५३॥ । नहीं निकले हैं। उन्होंने त्रस पर्याय या नरक-मनुष्य-देव
अर्थ-जो पुरुष परम भक्ति अनुराग सहित जिनेन्द्र देव | गति को प्राप्त ही नहीं किया है, अत: इनके सम्बन्ध में के चरण कमलों को नमस्कार करते हैं, वे श्रेष्ठ भाव रूप | पंचपरावर्तन का कथन नहीं सिद्ध होता है। बृहद्र्व्यसंग्रह शस्त्र के द्वारा, जन्म अर्थात् संसार रूपी बेल का जो मूल है, | | गाथा-३५ की टीका में इस प्रकार कहा है-'अयं तु विशेषःऐसे मिथ्यात्व को नष्ट करते हैं।
नित्यनिगोदजीवान् विहाय, पञ्चप्रकारसंसारव्याख्यानं ___ इस प्रकार उपर्युक्त महान् आचार्यों के प्रमाणों से यह | ज्ञातव्यम्। कस्मादिति चेत् नित्यनिगोदजीवानं कालत्रयेऽपि स्पष्ट होता है कि दर्शन-जाप-पूजन आदि शुभ परिणामों के | | नास्तीति।' अर्थ-यहाँ विशेष यह है कि नित्यनिगोद के जीवों द्वारा अविपाक कर्म निर्जरा भी होती है
को छोड़कर पाँच प्रकार के संसार का व्याख्यान जानना। यहाँ प्रश्नकर्ता : सौ. ज्योति लुहाडे, कोपरगांव
प्रश्न ऐसा क्यों? उत्तर-क्योंकि नित्यनिगोद के जीवों को जिज्ञासा : नित्य निगोदिया जीव अभी निगोद से ही | तीनों कालों में भी त्रसपना नहीं है। नहीं निकले हैं तो उनके पंचपरावर्तन कैसे गिनें ?
१/२०५, प्रोफेसर कालोनी, हरिपर्वत, आगरा
उत्प्रेरक की भूमिका में वास्तुशास्त्र
पं. लक्ष्मीनारायण द्विवेदी क्या जो लोग वास्तुशास्त्र में विश्वास रखते हैं, टपकने के कारण कुछ धन बर्बाद जरूर हो रहा होगा, उन्हें ही वास्तुदोष प्रभावित करते हैं? क्या जो लोग लेकिन आय इतनी ज्यादा है कि थोड़े से धन की बर्बादी वास्तु को नहीं मानते हैं, उन पर वास्तुदोष का कोई कोई खास असर नहीं दिखा पा रही है। इससे अलग असर नहीं होता है? ऐसा नहीं है। वास्तुशास्त्र की यदि कोई फैक्ट्री पहले से ही घाटे में चल रही हो तुलना चिकित्सा शास्त्र से इस तरह की जा सकती है और नल टपकने शुरू हो जाएँ, तो यकीनन इसका कि जैसे स्वस्थ जीवन के लिये कुछ नियम-निर्देश असर साफ-साफ दिखाई देगा। वास्तु शास्त्र तो उत्प्रेरक हैं, वैसे ही बेहतर जीवन के लिये भी वास्तु के कुछ की भूमिका निभाता है इसलिये जहाँ तक संभव हो नियम-निर्देश हैं । यदि कोई व्यक्ति स्वास्थ्य के किसी निर्माण के दौरान ही वास्तु के नियम-निर्देशों का नियम-निर्देश को नहीं मानता है, तो जरूरी नहीं कि पालन करने का प्रयास करना चाहिये। लेकिन पहले वह बीमार ही हो जाए। बीमार होना, न होना नियम- से मौजूद छोटे-मोटे वास्तु दोष को लेकर बहुत ज्यादा निर्देश के साथ-साथ व्यक्ति की शारीरिक क्षमता पर परेशान होना जरूरी नहीं है। जब तक कोई बड़ा भी निर्भर है। उसी तरह वास्तुदोष किस पर कितना वास्तुदोष न हो और किसी वास्तु दोष के कारण कोई प्रभावी होगा, यह इस बात पर निर्भर है कि व्यक्ति के स्पष्ट नुकसान दिखाई न दे, तब तक बेवजह तोड़ग्रहयोग कितने प्रबल हैं। एक फैक्टी में अनेक नल फोड करना ठीक नहीं है। टपक रहे हैं, लेकिन फैक्ट्री फायदे में चल रही है। कारण 'दैनिक भास्कर', भोपाल 1 जनवरी 2006 से साभार यह है कि फैक्ट्री के मालिक के सितारे बुलंद हैं। नल
स्वाध्याय से एक दो दिन में ही आप अपनी प्रतिभा के द्वारा बहुत सी गलत धारणाओं का समाधान पा जायेंगे, लेकिन यह ध्यान रखना कि जो ग्रन्थ आर्षप्रणीत (आचार्यप्रणीत) मूल, प्राकृत व संस्कृत भाषा के ही हों, मुख्यरूप से उन्हीं का स्वाध्याय करना चाहिये।
'सागर बूंद समाय' से साभार
जनवरी-फरवरी 2006 जिनभाषित / 45
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