Book Title: Jinabhashita 2006 01 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 50
________________ नेहरू नगर भोपाल में पंचकल्याणक एवं मानस्तम्भप्रतिष्ठा महोत्सव सम्पन्न संत शिरोमणि परमपूज्य श्री१०८ आचार्य विद्यासागर इसके लिये निस्पृह और निर्ग्रन्थ होना चाहिये। देहात का जी महाराज के आशीर्वाद से मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल व्यक्ति जब शहर में पहुँचता है अर्थात् प्राकृतिक जीवन से में नेहरू नगर स्थित नवीन दिगम्बर जैन मंदिर की प्राणप्रतिष्ठा कृत्रिम जीवनवाले स्थान में जाता है तब वहाँ की चकाचौंध हेतु दिनांक १ दिसम्बर से ७ दिसम्बर २००५ तक आयोजित और बाजारों को देखकर उसका मन भटकने लगता है। श्री१००८मज्जिनेन्द्र पंचकल्याणक मानस्तम्भ जिनबिम्ब उसमें सारी दुनिया को खरीदने की चाहत पनपने लगती है। प्रतिष्ठा एवं नगर गजरथ महोत्सव आचार्य श्री विद्यासागर जी जैन जैनेत्तर जनसमुदाय को सम्बोधित करते हुये कहा महाराज के परम तपस्वी शिष्य 'जंगल वाले बाबा'१०८ कि झंडे के तीन रंगों में केसरिया त्याग का प्रतीक है, सफेद मुनि श्री चिन्मयसागर जी महाराज के मंगल सान्निध्य में श्री शांति का प्रतीक है और हरा प्रकृति का प्रतीक है। हम सभी अजितनाथ दिगम्बर जैन मंदिर नेहरूनगर (कोटरा) एवं कृत्रिम जीवन जी रहे हैं, इसलिये मेरा कहना है कि प्रकृति सकल दिगम्बर जैन समाज भोपाल द्वारा आयोजित किया में लौट आइये (रिटर्न टू नेचर)। युवाओं के लिये उन्होंने गया था। नगर गजरथ महोत्सव का निर्देशन किया प्रतिष्ठाचार्य कहा कि अगर युवाओं का जोश एवं वृद्धों का होश मिल पंडित गुलाबचन्द्र जी पुष्प एवं महोत्सव के प्रतिष्ठाचार्य थे जायें, तो जयघोष होता है, वरना नहीं मिलने पर अफसोस पंडित जयकुमार निशांत एवं इनका सहयोग किया होता है। धर्म के बिना देश असुरक्षित है। देश धर्म और पंचकल्याणक महोत्सव के सूत्रधार पंडित कमलकुमार संस्कृति जब तक सुरक्षित नहीं, तब तक हम और आप भी कमलांकुर ने। अन्य सहयोगी ब्र. नितिन भैय्या जी खुरई, सुरक्षित नहीं हैं। संत ही देश की संस्कृति,सम्पत्ति है। शांति पंडित जयकुमार शास्त्री, बस्तर, पंडित मनीष जैन, टीकमगढ़ और सच्चाई के मार्ग पर चलने वाले ही संत कहलाते हैं। एवं पंडित राजेश राज भोपाल थे। उन्होंने कहा हमें कोई गैरजिम्मेदार न ठहरा सके, ऐसी ___ परम तपस्वी संत जंगल वाले बाबा मुनि श्री चिन्मयसागर जिम्मेदारी निभायें। सभी उपस्थित जनों से कहा कि धन जी महाराज ने अपने सारगर्भित प्रवचन में कहा कि भगवान् नहीं विश्वास कमाओं, सर्वोच्च शिखर पर पहुँच जाओगे। के गर्भ में आने के साथ ही सम्पूर्ण संसार में सुख और शांति मुनि श्री ने पंचकल्याणक महोत्सव के छठे दिन जो कि का वातावरण निर्मित हो जाता है और केवल मनुष्य ही नहीं मोक्षकल्याणक का था, अपनी मंगल वाणी से कहा कि वरन् पशु पक्षी और वनस्पति जीव भी सुख का अनुभव जैनदर्शन में मृत्यु का भी महोत्सव होना विशेष आदर्श है। करते हैं। जिस तरह पंचकल्याणक के माध्यम से पाषाण को अगली आयु का बंध किए बिना देह का त्याग ही निर्वाण भगवान् बनाया जाता है, उसी तरह मनुष्य भी भगवान् बन है। निर्वाण का अर्थ जन्म-मरण से रहित हो जाना। उन्होंने सकता है, यदि वह अपनी गलतियों की तरफ ध्यान दे। उपस्थित आमंत्रितों से कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को अपना जन्मकल्याण्क के अवसर पर अपने सारगर्भित प्रवचन कर्तव्य करते रहना चाहिये क्योंकि दायित्वों को निभाना ही में कहा कि आज का दिन बहुत ही पावन है। आज सुबह सबसे बड़ा धर्म है। राजा को हमेशा धर्मधारी होना चाहिये 7:30 बजे आप लोगों ने बालक आदिकुमार का जन्म होते ऐसा होने पर उसका राज्य सुख और शांति से चलता रहता हए देखा। उन्होंने जन्मकल्याणक के समय स्वर्ग में होने है। वाली मनोहारी क्रियाओं का संक्षिप्त वर्णन किया। मुनि श्री संध्या को गजरथ फेरी के समापन एवं भगवान् के ने कहा जन्म तो सभी का होता है लेकिन तीर्थंकर का जन्म कलशाभिषेक के बाद अपने सारगर्भित प्रवचनों में कहा कि कल्याणक के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि तीर्थंकर- संसार की अशांति को देखकर संत दुखी होता है। प्राणी मात्र आत्मा संसार में जन्म लेकर मोक्ष प्राप्त कर लेती है। की समस्या ही मेरी समस्या है। शरीर आदि की मेरी कोई तप कल्याणक पर प्रकाश डालते हुये मुनि श्री ने बतलाया समस्या नहीं है। संत हमेशा शांति एवं कृपा का संचार करते कि मोह का त्याग करने से ही निर्वाण की प्राप्ति संभव है। हैं। सुकुमाल जैन 48 / जनवरी-फरवरी 2006 जिनभाषित For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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