Book Title: Jinabhashita 2006 01 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 51
________________ कुण्डलपुर को पुरातत्त्व से मुक्त करने की माँग • सुनील बेजीटेरियन दमोह। शाकाहार उपासना परिसंघ ने धार्मिक स्थलों पर बेवजह पुरातत्त्व के हस्तक्षेप को समाप्त करने तथा कुण्डलपुर तीर्थ को जैन समुदाय को सुपुर्द करने की माँग की है। परिसंघ के प्रवक्ता सुनील बेजीटेरियन ने कहा कि जैन समुदाय कुण्डलपुर तीर्थ को विकसित कर एक अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का तीर्थ स्थल बनाना चाहता है, जबकि कुछ लोग पुरातत्त्व और प्राचीनता के नाम पर विकास के काम को अवरुद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं। मन्दिर का पराना ढाँचा बेहद कमजोर हो गया था. जो कभी भी किसी भी भकम्प के एकही झटके में धराशायी हो सकता था, जिससे न सिर्फ अनेक श्रद्धालुओं की मौत हो सकती थी, वरन् पुरातत्त्व की अनमोल धरोहर तथा जैन समाज के प्राणनाथ अतिशयकारी बड़े बाबा की भव्य प्रतिमा भी खतरे में पड़ सकती थी। कुछ वर्ष पूर्व जबलपुर में आये भूकम्प से बड़े बाबा की मूर्ति की पीछेवाली दीवार की नींव ढीली पड़ गयी थी, जिसे पीछे से पत्थरों की अतिरिक्त दीवाल बनाकर अस्थाई तौर पर सहारा दिया गया था। बड़े बाबा के मंदिर एवं मंडप की छत के पत्थरों में भी दरार आ गयी, जिसके कारण लकड़ी के लकडी के लटठे आदि लगाकर सहारा दिया गया था। वर्षा आदिका जलदीवालों में भरने से बडे बाबा की प्रतिमा नीचे जमीन में धीरे-धीरे धसकती जा रही थी। इसके अलावा बड़े बाबा की स्वयं की इच्छा के विरुद्ध कोई भी अन्य शक्ति उन्हें अपने स्थान से टस से मस नहीं कर सकती थी। अतिशयवान् बड़े बाबा के सामने कहा जाता है कि प्रार्थना करने पर मनोकामना पूर्ण होती है, “देते नहीं देखा, पर झोली भरी देखी" ऐसे बाबा के दर्शन, पूजन को प्रतिदिन हजारों लोग आते हैं। छत और दीवाल के टूटने से कोई अनहोनी न हो, इसलिए बाबा को किसी सुरक्षित स्थान पर बिठाना आवश्यक था।शांतिपूर्ण ढंग से और सुरक्षित रूप से बड़े बाबा को नये स्थान पर विराजमान करने के लिए लाखों श्रद्धालुओं ने करोड़ों मंत्रों का जप किया। हवन, पूजन एवं उपवास के फलस्वरूप बड़े बाबा स्वयमेव ही नाम मात्र के प्रयास से नये स्थान पर जा विराजे। इसके अतिरिक्त यदि अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष श्री इब्राहीम कुरैशी जी के वक्तव्य पर ध्यान दिया जाये कि अल्पसंख्यक समाज अपनी भावनाओं के अनुरूप अपने अविवादित धार्मिक स्थलों में परिवर्तन का हकदार है, तो इस परिवर्तन को भी बल मिलता है। यदि पुराने मंदिर के जर्जर हो गये ढाँचे से उठाकर, बड़े बाबा को सुरक्षित बड़े मंदिर में जैन समाज बिठाना चाहता है, तो इसमें हाय-तौबा मचाने की क्या आवश्यकता? जो कार्य पुरातत्त्व की उदासीनता के चलते नहीं हो सका, उसे जैन समाज ने अंजाम दे दिया, क्योंकि हजारों वर्षों से जैन समाज ही इसकी देखरेख करता आ रहा है। जैन समाजद्वारा दिल्ली के नोयडा में बनाये गये अक्षरधाम मंदिर की तर्ज पर बनाये जा रहे कुण्डलपुर में बड़े बाबा के १७१ फुट ऊँचे मंदिर के बन जाने के पश्चात् जहाँ विश्वभर के पर्यटक आवेंगे, वहीं दमोह का नाम विश्व के मानचित्र पर स्वत: ही उभर आयेगा, और क्षेत्र के विकास के साथ-साथ समृद्धि व रोजगार के अच्छे अवसर निर्मित होंगे। इस प्रकार पुरातत्त्व की अनुपम धरोहर को सुरक्षित स्थान पर विराजमान कर असंख्यात श्रद्धालुओं की भावना को साकार रूप मिला है। संयोजक शाकाहार उपासना परिसंघ, दमोह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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