Book Title: Jinabhashita 2006 01 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 36
________________ यदि जीव गिरें तो डूबे नहीं। १३. प्रतिदिन माला फेरें कि तीन कम नौ करोड़ मुनिराजों के ४. आहार नवधाभक्ति पूर्वक ही देवें क्योंकि इस विधि | | आहार निरंतराय हों। पूर्वक दिया गया आहार दान ही पुण्य बंध का कारण | १४. शोधन खुली प्लेट में ही करें। जिससे शोधन ठीक तरह होता है। नवधा भक्ति-पड़गाहन, उच्चासन, पादप्रक्षालन, से हो। पूजन, नमन, मनःशुद्धि, वचन शुद्धि एवं काय शुद्धि का | १५. सूखी सामग्री का शोधन एक दिन पूर्व ही अच्छी तरह संकल्प करना। करना चाहिये। जिससे कंकड़, जीव, मल, बीज आदि निरन्तराय आहार हेतु सावधानियाँ का शोधन ठीक से हो जाता है। साधु को निरंतराय आहार होवे, यह दाता की सबसे | १६. अधिक गर्म जल, दूध वगैरह भी न चलायें। यदि ज्यादा बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि साधु की सम्पूर्ण धर्म साधना, | गर्म है और साधु नहीं ले पा रहे हैं तो साफ थाली के चिंतन, पठन, मनन निर्बाध रूप से अविरल अर्हनिश माध्यम से ठंडा करके देवें। यदि दूध गाय का है तो ऐसे होती रहे, इस हेतु निरंतराय आहार आवश्यक है।। ही दें। यदि भैंस का है तो आधे गिलास दूध में आधा सावधानी रखना दाता का प्रमुख कर्त्तव्य है। जल मिलाकर दें। यदि ऐसा ही लेते हैं तो बिना जल तरल पदार्थ (जल, दूध, रस आदि) जो भी चलायें | मिलाये भी दे सकते हैं। तुरंत छान कर देवें लेकिन प्लास्टिक की छन्नी का | १७. आहार देते समय पात्र के हाथ से ग्रास नहीं उठाना प्रयोग न करें। एकदम जल्दी व एक दम धीरे न दें। | चाहिये, क्योंकि इससे अन्तराय हो जाता है। पड़गाहन के पूर्व सभी सामग्री का शोधन कर लेवें तथा | १८. सभी के साथ द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावों की शुद्धि, ईंधन चौके में जीव वगैरह न हों बारीकी से देखें। शुद्धि, बर्तनों की शुद्धि भी आवश्यक है। यदि साधु को आहार लेते समय घबराहट हो रही है तो | १९. मुख्य रूप से साधु का लाभान्तराय कर्म एवं दाता का नींबू, अमृतधारा या हाथ में थोड़ा सा बेसन लगाकर | दानान्तराय कर्म का उदय होता है। लेकिन दाता की सुंघा दें। असावधानियों के कारण भी अधिकांश अंतराय आते बाहर के लोगों को कोई सामग्री न पकड़ाएँ, उनसे | चम्मच से सामग्री दिलवायें। २०. साधु को आहार देते समय दाता का हाथ साधु की कोई भी वस्तु जल्दबाजी में न दें। कम से कम तीन बार अंजुली से स्पर्श नहीं होना चाहिये। यदि अंजुलि के पलटकर देख लें। बाहर कोई बाल या जीव हटाना है तो हटा सकते हैं। सामग्री का शोधन वद्धों एवं बच्चों से न करायें। इनसे | २१. सामग्री देते समय सामग्री गिराना नहीं चाहिये, कभीचम्मच से सामग्री दिलवायें। कभी ज्यादा गिरने के कारण साधु वह वस्तु लेना बंद मुनि, आर्यिका, ऐलक, क्षुल्लक जो भी साधु हैं, उनसे | भी कर सकते हैं। तीन बार तक आग्रह । निवेदन करें। जबरजस्ती सामग्री | २२. गैस, चूल्हा, लाईट आदि पड़गाहन के पूर्व ही बंद कर नहीं दें। देवें। यदि पात्र में मक्खी गिर जाये तो उसे उठाकर राख में | २३. दाता को मंदिर के वस्त्र पहनकर आहार नहीं देना चाहिये रखने से मरने की संभावना नहीं रहती है। तथा पुरुषों को वस्त्र बदलते समय गीली तौलिया पहनकर ). ग्रास यदि एक व्यक्ति ही चलाये तो उसका उपयोग वस्त्र बदलने चाहिये। क्योंकि अशुद्ध वस्त्रों केऊपर शुद्ध वस्त्र पहन लेने से अशुद्धि बनी रहती है। महिलाओं एवं स्थिर रहता है। जिससे शोधन अच्छे से होता है। बच्चों को भी यही बातें ध्यान रखना चाहिये तथा फटे १. एक व्यक्ति एक ही वस्तु पकड़े, एक साथ दो नहीं।। एवं गंदे वस्त्र भी नहीं पहनें तथा चलते समय वस्त्र जिससे शोधन अच्छी तरह से हो सके। जमीन में भी नहीं लगने चाहिये। १. आहार देते समय भावों में खूब विशुद्धि बढ़ायें। णमोकार | | २४. शुद्धि के वस्त्र वाथरूम आदि से न बदलें और न ही मंत्र भी मन में पढ़ सकते हैं। शद्धि के वस्त्र पहनकर शौच अथवा बाथरूम का प्रयोग / जनवरी-फरवरी 2006 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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