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करें और यदि करें तो वस्त्रों को पूर्ण रूप से बदल कर अन्य। लें। जिस पर सामग्री रखने में सुविधा रहती है।
शुद्ध वस्त्र धारण करने के पूर्व शरीर का स्नान आवश्यक | २७. बर्तनों में वार्निस एवं स्टीकर नहीं लगा होना । वह सर्वथा है अन्यथा काय (शरीर) शुद्धि नहीं रहेगी।
अशुद्ध है। २५. चौके में कंघा, नेलपॉलिस, बेल्ट, स्वेटर आदि न रखें | २८. जहाँ चौका लगा हो, उस कमरे में लेटरिन, वाथरूम एवं चौके में कंघी भी न करें।
नहीं होना चाहिये। वह अशद्ध स्थान माना जाता है। २६. यदि पात्र मुनि हैं तो बगल में टेबिल पहले से रख लें।
क्षेत्रीय अधिकारी, द. प. सा. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक यदि आर्यिका, ऐलक, क्षुल्लक हों तो बड़ी चौकी रख |
देवरी सागर (म. प्र.)
गोमटेश का पत्थर बोल रहा है
डॉ. सुशील जैन बढ़ रही शोभा शरीर की चढ़कर बेल लतायें, उस पावन प्राचीन भूमि पर दीप अनेक जलायें। भव्य कलाओं से निर्मित माटी पर पलक बिछायें, धन्य-धन्य वह मरुस्थल जिसने गीत धर्म के गाये। जो भारत का गौरव रखने रंग उड़ेल रहा है,
ऐसा लगता है गोमटेश का पत्थर बोल रहा है ॥१॥ उस पत्थर का टुकड़ा-टुकड़ा भगवान् के गुण गाता, यह सत्तावन फिट तक ऊँची नभ को चूम रही है, हीरे की मिट्टी से ज्यादा उसको परखा जाता। जिसके चरणों को अब जगती माँ भी पूज रही है। झूम उठा अन्तस्थल उसका जो एक बार को जाता, मंदिर प्राचीन बना जिस पर जलता दीप सदा है, मस्तक टेक बाहुबली पर जीवन सफल बनाता है। मानस्तम्भ की शोभा न्यारी बीचों बीच खड़ा है। उन पाषाणों को जग सारा कब से देख रहा है, सुरज चन्दा दर्शन करने किरणें बिखेर रहा है: ऐसा लगता है गोमटेश का पत्थर बोल रहा है ॥२॥ ऐसा लगता है गोमटेश का पत्थर बोल रहा है ॥५॥
विन्ध्यगिरि और चन्द्रगिरि कब से यहाँ खड़े हैं, इस पर मंदिर वैसे के वैसे अब तक यहाँ बने हैं। श्रुतके वली भद्रबाहु की बोल रही हर काया, जिसने समाधिमरण कर जीवन सफल बनाया। कितने ऋषि मुनि जन इसका स्वयश लूट रहा है, ऐसा लगता है गोमटेश का पत्थर बोल रहा है॥३॥
नृपमंत्री चामुण्डराय ने इसका कार्य सम्हाला, गंगराज्य के मंत्री ने था किया निर्माण निराला। नौ सौ नब्बे में निर्मित फैली कीर्ति पताका, जिसको सुनकर हर मानव अचरज मन में लाता। राजवंश मैसूर प्रांत भी इसको चूम रहा है, ऐसा लगता है गोमटेश का पत्थर बोल रहा है ॥६॥
किस शिल्पी ने श्रम से उस पत्थर में प्राण दिये, मूरत मानो बोल रही सुन्दर तम रूप लिये। शिल्पी हो गया वह धन्य जिसने अपना पथ मोड़ा, छैनी हथौड़ा चला चला भगवान् बनाकर छोड़ा। अचरज में पड़ जाता शिल्पी जो उसको देख रहा है, ऐसा लगता है गोमटेश का पत्थर बोल रहा है।४॥
नहीं लेखनी लिख सकती यह गौरव कथा तुम्हारी, अभिषेक किया था तन पर जो थी गुल्लिका नारी। सुशील तेरा यश पाकर चरनन शीश झुकाता, बाहुबली की देख मूर्ति को फूला नहीं समाता। एक बार जो भी आता नहीं तुझको भूल रहा है, ऐसा लगता है गोमटेश का पत्थर बोल रहा है।७।।
सम्पादक-जैन प्रभात जैन नर्सिंग होम कुरावली, मैनपुरी
जनवरी-फरवरी 2006 जिनभाषित /35
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