Book Title: Jinabhashita 2006 01 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 38
________________ दूध अमृत है या विष ? शाकाहार है या मांसाहार ? पिछले कुछ समय से दूध के विषय में एक बहस चल रही है कि दूध शाकाहार का एक रूप है या मांसाहार का? और इस बहस को अंजाम दिया भारत के सबसे नामचीन घराने की बहू और शाकाहार के प्रति समर्पित श्रीमती मेनका गांधी ने । यों तो श्रीमती मेनकागांधी किसी परिचय की मोहताज नहीं है सारा देश जानता है कि श्रीमती गांधी मूक और बेबस जानवरों की मुख्य संरक्षक हैं और उनके हक के लिए लड़ने में वह सदैव आगे रहती हैं। पर दूध जैसे विषय पर उन्होंने बहस छेड़कर हजारों सालों से अमृत जैसे इस आहार को उन्होंने मांसाहार का ही एक रूप बताकर जनमानस विशेषकर अहिंसा प्रधान जैन धर्मावलंबियों की भावना को गहरा आघात पहुँचाया है और इसी विषय पर मैं आप सभी विद्वान् पाठकों की राय जानना चाहूँगा। भारत के सबसे चर्चित अखबार 'नवभारत टाइम्स' से दिनांक २७.११.०५ रविवारीय अखबार में मेनकागांधी का इस विषय पर एक लेख छपा था, जिसमें उन्होंने 'दूध मांसाहार का ही एक रूप है', के बारे में अनेक तर्क दिए और यह जताने की कोशिश की कि जो व्यक्ति दूध का सेवन करते हैं, वह जाने अनजाने मांसाहार का ही सेवन करते हैं। इस विषय पर उनके लेख की मुख्य बातें इस प्रकार हैं। "दूध मांसाहार है क्योंकि यह जानवर के शरीर से मिलता है और उसके खून से बनता है। आम भारतीय अगर दूध को शाकाहारी मानते हैं तो इसके लिए हमारे देश के डॉक्टर दोषी हैं, जिनके पास खानपान से सम्बन्धित कोई जानकारी नहीं है। दूध हमारे शरीर के लिए बेहद नुकसानदेह तेल है। सच्चाई यह है कि दूध अनुपयोगी मांसाहार और खतरनाक है और किसी भी रूप में शाकाहारियों के भोजन का हिस्सा नहीं होना चाहिए।" हजारों हजार साल पहले हमारे ऋषि मुनियों ने दूध की व्याख्या अमृत रूप में की थी। वेद शास्त्रों और पुराणों में इस यदि तुम्हारे एक शब्द से भी किसी को कष्ट पहुँचता है तो तुम अपनी सब भलाई नष्ट समझो। आग का जला हुआ तो समय पाकर अच्छा हो जाता है, पर वचन का घाव सदा हरा बना रहता है । जो पुरुष समझबूझ कर अपनी इच्छाओं का दमन करता है, उसे सभी सुखद वरदान प्राप्त होंगे। तिरुवल्लुवर - रचित 'तिरुक्कुरल' से साभार 36 / जनवरी-फरवरी 2006 जिनभाषित संजय पाटनी बात का उल्लेख है कि अमृत के रूप में हमें दूध मिला है। पंचामृत अभिषेक तथा शिवलिंग पर दूध के अभिषेक इस बात के प्रमाण कि दूध शुद्ध ही नहीं एक पवित्र पदार्थ है । तो क्या मेनका गांधी की बातों को मानकर हम इन सब प्रमाणों को झुठला दें ? गलत मान लें ? यह मान लें कि हमारे वेद, पुराण, शास्त्र सब गलत हैं ? आज मैं मेनका गांधी से एक सवाल का जवाब जानना चाहूंगा कि जिन बच्चों की मां बच्चे को जन्म देते ही स्वर्ग सिधार जाती हैं, वह बच्चे किसका दूध पीकर बड़े होते हैं? स्वाभाविक है ऐसे बच्चों को गाय का दूध ही पिलाया जाता है । उन बच्चों की जिन्दगी गाय के दूध पर ही निर्भर होती है । अगर हम मेनका गांधी की बातों को मान लें कि दूध, दूध नहीं मांसाहार का ही रूप है तो फिर उन बच्चों की जिंदगी कैसे बचे? कितनी ही बार देखने तथा सुनने में आया है कि वात्सल्य से ओतप्रोत पशु के स्तनों से स्वतः दूध निकलने लगता है । अगर दूध, दूध न होकर खून है तो फिर थनों से दूध की जगह खून निकलना चाहिए? आज अगर हम मेनका गांधी की बातों को इसी तरह नजरअंदाज करते रहे तो हम शाकाहारी समाज के सम्मुख एक गंभीर संकट खड़ा हो जाएगा। और इसके लिए मैं सभी विद्वान् पाठकों से निवेदन करता हूँ कि वह इसके विरोधस्वरूप श्रीमती मेनका गांधी को सख्त से सख्त भाषा में पत्र लिखें। श्रीमती गाँधी का दिल्ली का पता है - श्रीमती मेनका गाँधी, संसद सदस्या, ए ५ महारानी बाग, नई दिल्ली। यह सही है कि लोकतंत्र में सबको अपनी-अपनी बात रखने का अधिकार है, पर इसका मतलब यह तो नहीं कि कोई हमारी आस्था को ही चोट पहुँचाए। मैं श्रीमती गाँधी से निवेदन करूँगा कि वह दूध को अमृत ही बना रहने दें। अपनी तर्कहीन बातों से उसे खून न बनने दें। इचलकरंची (महा. ) जैन गजट से साभार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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