Book Title: Jinabhashita 2006 01 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 35
________________ साधुओं को अवश्य दें आहारदान, किन्तु रहें सावधान पं. राजकुमार जैन शास्त्री आहार दान का अधिकार कौन? धोयें तथा सभी लोग गंधोदक अवश्य लें। १. आहार दाता का प्रतिदिन देवदर्शन का नियम, रात्रिभोजन | २. चौके में पैर धोने के लिये प्रासुक जल ही रखें और त्याग, सप्त व्यसनों का त्याग तथा सच्चे देव, शास्त्र, गुरु | सभी लोग पैर एड़ी से अच्छी तरह धोकर ही प्रवेश करें को मानने का नियम होना चाहिये। एवं अंदर भी अच्छी तरह से हाथ धोवें। २. जिनका आय का स्रोत हिंसात्मक व अनुचित न हो। | ३. पड़गाहन के समय साफ-सुथरी जगह में खड़े होवें। आहारदान वे ही कर सकते हैं, (शराब का ठेका, जुआ, जहाँ नाली का पानी बह रहा हो, मरे जीव जंतु पड़े हों, सट्टा खिलाना, कीटनाशक दवायें, ब्यूटी पार्लर, नशीली | हरी घास हो,पशुओं का मल हो, ऐसे स्थान से पड़गाहन वस्तु का व्यापार)। न करें एवं साधुओं को चौके तक ले जाते समय भी इन ३. जिनके परिवार में जैनेतरों से विवाह सम्बन्ध न हुआ सभी बातों का ध्यान रखें। ४. नीचे देखकर ही साधु की परिक्रमा करें एवं परिक्रमा ४. जिनके परिवार में विधवा विवाह सम्बन्ध न हुआ हो।। करते समय साधु की परछाई पर पैर न पड़े इसका ५. जो अपराध, दिवालिया, पुलिस केस, सामाजिक प्रतिबंध ध्यान रखें। आदि से परे हों। | ५. साधु के पड़गाहन के बाद पूरे आहार करते समय साधु ६. जो हिंसक प्रसाधनों (लिपिस्टक, नेलपेन्ट, चमडे से | की परछाई पर पैर न पड़े इसका ध्यान रखें। बनी वस्तुएँ, लाख की चूड़ी, हाथी दांत व चीनी के | ६. जब दूसरे के चौके में प्रवेश करते हैं तो श्रावक एवं आभूषण) रेशम के वस्त्रों आदि का उपयोग न करते हों साधु से अनुमति लेकर ही प्रवेश करें। एवं नाखून बढ़ाये न हों। | ७. नीचे देखकर जीवों को बचाते हुए प्रवेश करें। यदि ७. जो किसी भी प्रकार के जूते, चप्पल आदि निर्माण या | कोई जीव दिखे तो उसे सावधानी से अलग कर दें। व्यवसाय करते हैं, वे भी आहार देने के पात्र नहीं हैं। ८. पूजन द्रव्य एक ही व्यक्ति चढ़ायें, जिससे द्रव्य गिरे नहीं ८. जो भ्रूणहत्या, गर्भपात करते हैं, करवाते हैं एवं उसमें क्योंकि उससे चींटियाँ आती हैं। उठते समय हाथ जमीन प्रत्यक्ष परोक्ष रूप से सहभागी होते हैं (सम्बन्धित दवाई से न टेकें। आदि बेचने के रूप में) वे भी आहार दान देने के पात्र | ९. पाटा पड़गाहन से पूर्व ही व्यवस्थित करना चाहिये एवं . नहीं हैं। ऐसे स्थान पर लगाना चाहिये. जहाँ पर पर्याप्त प्रकाश ९. यदि शरीर में घाव हो या खून निकल रहा हो एवं | हो, ताकि साधु को शोधन में असुविधा न हो। बुखार, सर्दी, खांशी, केंसर, टी. वी., सफेद दाग आदि | १०. सामग्री एक ही व्यक्ति दिखाये जो चौके का हो और रोगों के होने पर आहार न देवें। जिसे सभी जानकारी हो। १०. रजस्वला स्त्री छटवें दिन भगवान् के दर्शन, पूजन व | ११. महिलायें एवं पुरुष सिर अवश्य ढांककर रखें। जिससे साधु को आहार देने के योग्य शुद्ध होती है। अशुद्धि के बाल गिरने की संभावना न रहे। दिनों में चौके से सम्बन्धित कोई कार्य नहीं करें और | १२. शद्धि बोलते समय हाथ जोडकर शद्धि बोलें। हाथ में खाद्य सामग्री शोधन भी न करें। बर्तन भी जो स्वयं के आहार सामग्री लेकर शुद्धि न बोलें, क्योंकि इससे धुंक उपयोग में लिये हैं, उन्हें अग्नि के द्वारा शुद्ध करना के कण सामग्री में गिर जाते हैं। आहार के दौरान मौन से चाहिये। रहें। बहुत आवश्यक होने पर सामग्री ढंककर सीमित' आहारदान के नियम बोलें। १. पाद प्रक्षालन के बाद गंधोदक की थाली में हाथ नहीं | १३. पात्र में जाली ही बांधे एवं पात्र गहरा, बड़ा रखें, जिससे जनवरी-फरवरी 2006 जिनभाषित /.३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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