Book Title: Jinabhashita 2006 01 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 34
________________ पं. वंशीधर जी का व्यक्तित्व महान् था और कृतित्व बहुआयामी । उन्होंने जहाँ सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया वहीं कभी भी अपनी राष्ट्रीय सेवाओं को भुनाने का विचार तक नहीं किया। उन्होंने 'स्वतंत्रता आंदोलन संघर्ष के बाद देश आजाद हो गया, लड़ाई समाप्त हो गई' सही सोचकर माँ जिनवाणी की आराधना में अपने को नियोजित कर लिया । पं. वंशीधर जी अपने समय के लोकप्रिय एवं श्रद्धास्पद विद्वान् थे । शैक्षणिक, सामाजिक एवं धार्मिक गतिविधियों में उनकी महती भूमिका रहती थी। जैनसाहित्य और समाज सेवा में लगे पंडित जी भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत् परिषद् के यशस्वी अध्यक्ष रहे। इनका कार्यकाल गरिमापूर्ण था। गुरु गोपालदास बरैया शताब्दी समारोह उसी बीच आयोजित हुआ और उसकी सफलता में पंडित जी का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। श्री गणेश प्रसाद वर्णी जैन ग्रंथमाला के मंत्री के नाते उन्होंने संस्था को निरंतर आगे बढ़ाने का प्रयास किया। पंडित जी सरस्वती पुत्र थे । उनकी विद्याराधना और साहित्य साधना उच्चकोटि की थी। वे मौलिक रचनाकार थे। पंडित जी ने अपना संपूर्ण जीवन जिनवाणी की आराधना और साहित्य साधना में लगाया। पं. जी की मौलिक कृतियां उनके गहन चिंतन को प्रकट करती हैं। 'खानिया तत्त्वचर्चा गोमटेश बाहुबली ऋषभ के राजकुँअर, सुनन्दा के लाड़कुँअर, भरत के भाई की है मूरत भोली भली ! नयनों में 'अनेकान्त', कैलाश मड़बैया नासिका एकाग्र शान्त, होंठ अहिंसा की जैसे आँच में खिली कली ! पृथ्वी - पुत्र पौरुष से आसमाँ को छू रहा, श्रमणों का सन्त हुआ साधना महाबली सूरज की क्रान्ति और चन्द्रमा की कान्ति लिये, देह - बली, आत्म-बली, गोमटेश बाहुबली ! चित्रगुप्त नगर, भोपाल 32 / जनवरी-फरवरी 2006 जिनभाषित Jain Education International | और उसकी समीक्षा' लिखकर उन्होंने आगम का विशुद्ध पक्ष सामने रखा। 'निश्चय और व्यवहार' उनकी चर्चित कृति है । पं. जी की अन्य पुस्तकें हैं- 'जैन दर्शन में कार्यकारण भाव और कारक व्यवस्था', 'पर्यायें क्रमबद्ध भी होती हैं और अक्रमबद्ध भी', 'भाग्य और पुरुषार्थ एक नया अनुचिंतन', 'जैन तत्त्वमीमांसा की मीमांसा' आदि । बीसवीं सदी के विद्वानों में पंडित जी का स्थान अग्रगण्य है । १९९० में उनकी विशिष्ट सेवाओं का अभिनंदन करने हेतु सागर (म.प्र.) में एक बृहत् अभिनंदन ग्रंथ भेंट कर आपको सम्मानित किया गया था। ११ दिसम्बर, १९९६ में बड़े ही शांत परिणामों के साथ आपका निधन हो गया । पूज्य पंडित जी के साहित्य का, सामाजिक, शैक्षणिक एवं धार्मिक अवदान के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन हेतु शताब्दी वर्ष में उनके द्वारा की गई जिनवाणी-आराधना का मूल्यांकन अवश्य ही होना चाहिए, जिससे विलुप्त होती जैन शास्त्रीय विद्वानों की परम्परा को मार्गदर्शन मिले और नवीन विद्वान् इस ओर प्रवृत्त हों। हमारी विनम्र श्रद्धांजलि । शिक्षक आवास 6 श्री कुन्दकुन्द जैन महाविद्यालय परिसर खतौली- २५१२०१ (उ. प्र. ) मृदुमती माता जी के बेगमगंज चातुर्मास में हुए अभूतपूर्व कार्यक्रम संत शिरोमणी १०८ आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की परम विदुषी शिष्या आर्यिकारत्न १०५ श्री मृदुमती माता जी के पावन सान्निध्य में आचार्य विद्यासागर शिक्षण शिविर सम्पन्न किया गया तथा आगामी पंचकल्याणक हेतु मंदिर वेद शिखर का नव निर्माण किया गया। आर्यिका रत्न मृदुमाताजी द्वारा नगर के समस्त स्कूलों एवं जेल में पावन प्रवचन किए गए। For Private & Personal Use Only नवनीत जैन गैरतगंज में ऐतिहासिक १००८ श्री समवशरण महामण्डल विधान आर्यिका रत्न १०५ तपोमती माता जी, आर्यिका श्री सिद्धान्तमती माता जी, आर्यिका श्री नम्रमती माता जी, आर्यिका श्री पुराणमती माता जी एवं आर्यिका श्री उचितमती माता जी ससंघ के परम सान्निध्य में प्रतिष्ठाचार्य वा. ब्र. सुमत जी एवं बा. ब्र. अनिल जी के निर्देशन में सम्पन्न किया गया। अध्यक्ष टेकचन्द जैन www.jainelibrary.org

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