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संरक्षक वर्ग शिक्षक-शिक्षिकाओं का चयन इस तथ्य । से विषय को इतना सरल बना सकते हैं कि छात्र-छात्राएँ को ध्यान में रखकर करें। सती मैनासंदरी का आख्यान | उन्हें सरलता से हृदयंगम कर लेते हैं। शिक्षक स्वयं स्लाइडस पढ़ाने वाली शिक्षिका या शिक्षक यदि स्वयं प्रेम विवाह कर तैयार कर सकते हैं या चित्रकार से करवा सकते हैं। प्रोजेक्टरों ले तो उसका क्या प्रभाव पड़ेगा, यह एक विचारणीय प्रश्न | के माध्यम से परदे पर स्लाइड्स या ट्रान्सपेरेन्सी बड़े दिखते
हैं और शिक्षक इनके भेद-प्रभेद अच्छी तरह समझा सकते ७. कम्प्यूटर द्वारा : आजकल कम्प्यूटर भी शिक्षा का | ह । किसा भा विषय क भद-प्रभद समझान म एल.सा.डा. महत्त्वपूर्ण साधन है। इन्टरनेट पर कई जैन वेबसाइट्स हैं, प्रोजेक्टर बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है। समाज के सम्पन्न जिनसे तीर्थक्षेत्र सहित जैनदर्शन की महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ | महानुभावों को प्रेरित कर इन आधुनिक उपकरणों की व्यवस्था मिलती हैं। जिससे छात्रों की रुचि बढ़ती है। इनकी व्यवस्था पाठशालाओं में करवायी जाना चाहिये। की जानी चाहिये।
उपर्युक्त और इसी प्रकार के अन्य उपायों से मैं ८. अन्य आधुनिक शैक्षणिक उपकरणों का प्रयोग : | समझता हूँ कि पाठशाला की शिक्षा प्रभावी सिद्ध होगी और ओवरहेड प्रोजेक्टर, स्लाइड प्रोजेक्टर, एल.सी.डी. प्रोजेक्टर | यह बालक बालिकाओं को आकर्षित भी करेगी। आदि-आदि, छात्र-छात्राएँ इन आधुनिक उपकरणों की ओर
निदेशक, जवाहरलाल नेहरू स्मृति महाविद्यालय, आकर्षित भी होते हैं तथा शिक्षक/शिक्षिकायें इनके माध्यम
गंजबासौदा
भगवान् पुष्पदन्त जी जम्बूद्वीप सम्बन्धी भरत क्षेत्र की काकंदी नगरी में इक्ष्वाकुवंशी काश्यपगोत्री सुग्रीव नाम के राजा राज्य करते थे। जयरामा उनकी पटरानी थी। मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा के दिन उस महादेवी ने प्राणत स्वर्ग से अवतरित इन्द्र को तीर्थंकर सुत के रूप में जन्म दिया। चन्द्रप्रभ भगवान् के बाद जब नब्बे करोड़ सागर का अन्तर बीत चुका तब पुष्पदन्त भगवान् का जन्म हुआ था। उनकी आयु भी इसी अन्तर में शामिल थी। दो लाख पूर्व की उनकी आयु थी, सौ धनुष ऊँचा शरीर था। पचास हजार पूर्व तक उन्होंने कुमार अवस्था के सुख प्राप्त किये थे। तदनन्तर उनके माता-पिता ने अनेक राज कन्याओं से उनका विवाह सम्पन्न कर उन्हें राजपद प्रदान किया। इस प्रकार राज्य करते हुए जब उनके राज्य काल के पचास हजार पूर्व और अट्ठाईस पूर्वांग बीत गये तब वे एक दिन दिशाओं का अवलोकन कर रहे थे। उसी समय उल्कापात देखकर उन्हें आत्मज्ञान प्रकट हो गया। जिससे उन्होंने अपने सुमति नामक पुत्र को राज्य देकर मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा के दिन पुष्पक वन में सायंकाल के समय एक हजार राजाओं के साथ दीक्षा धारण कर ली। वे पारणा के लिये शैलपुर नामक नगर में प्रविष्ट हुए। वहाँ सुवर्ण के समान कान्ति वाले पुष्पमित्र राजा ने उन्हें आहार दान देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये। इस प्रकार छद्मस्थ अवस्था में तपस्या करते हुए उनके चार वर्ष बीत गये। तदनन्तर उसी दीक्षा वन में बेला का नियम लेकर वे नागवृक्ष के नीचे स्थित हुए और कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन सायंकाल के समय घातिया कर्मों को नष्ट कर केवलज्ञान प्राप्त किया। धनपति कुबेर ने उनके अचिन्त्य वैभव स्वरूप समवशरण की रचना की, भगवान् के समवशरण में दो लाख मुनि, तीन लाख अस्सी हजार आर्यिकायें, दो लाख श्रावक, पाँच लाख श्राविकायें, असंख्यात देव-देवियाँ और संख्यात तिर्यंच थे। इस तरह बारह सभाओं से पूजित भगवान् पुष्पदन्त आर्य देशों में विहार कर धर्मोपदेश देते हुए सम्मेदशिखर पर पहुँचे और योग निरोध कर भाद्र शुक्ल अष्टमी के दिन सायंकाल के समय एक हजार मुनियों के साथ निर्वाण को प्राप्त किया।
मुनि श्री समता सागर जी कृत 'शलाका पुरुष' से साभार
जनवरी-फरवरी 2006 जिनभाषित /29
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