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ने द कहते हैं, परमात्मा अकेला था। एकाकीपन उसे साक्षात का सूत्रपात हुआ। वह ठीक वेद से उलटा है। 1 खला, अकेलेपन से ऊबा। सोचा उसने, बहुत हो | वेद कहते हैं, वह अकेला था, ऊबा, उसने बहुत को रचा।
जाऊं। फिर उसने बहुत रूप धरे। ऐसे संसार | महावीर बहुत से ऊब गए, भीड़ से थक गए और उन्होंने चाहा, निर्मित हुआ। सृष्टि की यह कथा है।
अकेला हो जाऊं। परमात्मा का उतरना संसार में, फैलना और स एकाकी न रेमे, एकोऽहं बहुस्याम्!
महावीर का लौटना वापिस परमात्मा में! इसलिए अकेला वह ऊबने लगा। सोचा बहुत रूपों को सृजूं, बहुत श्रमण-संस्कृति के पास अवतार जैसा कोई शब्द नहीं है। रूपों में रमूं।
तीर्थंकर! अवतार का अर्थ है: परमात्मा उतरे, अवतरित हो। ब्राह्मण-संस्कृति इसी सूत्र का विस्तार है-परमात्मा का तीर्थंकर का अर्थ है : उस पार जाए, इस पार को छोड़े। अवतार अवतरण, परमात्मा का फैलाव। ब्रह्म शब्द का यही अर्थ है : जो का अर्थ है: उस पार से इस पार आए। तीर्थंकर का अर्थ है : फैलता चला जाए, जो बहुत रूप धरे, जो बहुत लीला करे, जो घाट बनाए इस पार से उस पार जाने का। संसार कैसे तिरोहित अनेक-अनेक ढंगों से अभिव्यक्त हो, सागर जैसे अनंत-अनंत हो जाए, स्वप्न कैसे बंद हो, भीड़ कैसे विदा हो; फिर हम लहरों में विभाजित हो जाए।
अकेले कैसे हो जाएं-वही श्रमण-संस्कृति का आधार है। एक अनेक बनता है, एक अनेक में उत्सव मनाता है। एक | वर्द्धमान कैसे महावीर बने, फैलाव कैसे रुके; क्योंकि जो अनेक में डूबता है, स्वप्न देखता है। माया सर्जित होती है। फैलता चला जा रहा है उसका कोई अंत नहीं है। वह पसारा बड़ा
संसार परमात्मा का स्वप्न है। संसार परमात्मा के गहन में उठी है। वह कहीं समाप्त न होगा। स्वप्न फैलते ही चले जाएंगे, विचार की तरंगें हैं।
फैलते ही चले जाएंगे और हम उनमें खोते ही चले जाएंगे। ब्राह्मण-संस्कृति ने परमात्मा के इस फैलाव के अनूठे गीत जागना होगा! गाए। उससे भक्ति-शास्त्र का जन्म हुआ। भक्ति-शास्त्र का | भक्ति-शास्त्र ने परमात्मा के इस संसार के अनेक-अनेक अर्थ है : परमात्मा का यह फैलता हुआ रूप, अहोभाग्य है। रूपों के गीत गाए, महावीर ने इस फैलती हुई ऊर्जा से संघर्ष परमात्मा का यह फैलता हुआ रूप परम आनंद है। इसलिए | किया-इसलिए 'महावीर' नाम-लड़े, धारा के उलटे बहे। भक्ति में रस है, फैलाव है। एक शब्द में कहें तो महावीर का जो गंगा बहती है गंगोत्री से गंगासागर तक-ऐसी बचपन का नाम है, वह ब्राह्मण-संस्कृति का सूचक है। महावीर | ब्राह्मण-संस्कृति है। ब्राह्मण-संस्कृति का सूत्र है: समर्पण; का बचपन का नाम था: वर्द्धमान—जो फैले, जो विकासमान छोड़ दो उसके हाथ में, जहां वह जा रहा है; चले चलो; भरोसा हो। फिर महावीर को दूसरी ऊर्जा का, दूसरे अनुभव का, दूसरे करो; शरणागति !
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