Book Title: Janma Aur Mrutyu Se Pare
Author(s): A C Bhaktivedant
Publisher: Bhaktivedant Book Trust

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Page 11
________________ इसी पानी को छू कर हम काँपते हैं क्योंकि वह बहुत ठण्डा है। दोनो समय पानी वही है, पान्तु शरीर के स्पर्श से वह आनन्दमय या दुःखमय दीखता है सभी सुख और दुःख के अनुभव शरीर के कारण हैं। किसी विशेष परिस्थिति में शरीर और मन सुख और दुःख का अनुभव करता है। वास्तव में हम सुख के लिए तरस रहें हैं और आत्मा का स्वरूप सुख ही है। आत्मा वही परमेश्वर का अंश है जो कि सच्चिदानन्द विग्रह है - जो सनातन है, जिन्हें पूर्ण ज्ञान है और सदैव आनन्दमय हैं। वास्तव में कृष्ण नाम, जो कि सांप्रदायिक नहीं है, के माने सबसे बड़ा आनन्द है। 'कृष्' के माने सबसे बड़ा और 'ण' के माने आनन्द। कृष्ण भगवान् -आनन्द की अवधि हैं और उनके अंश होने के कारण हम भी आनन्द को तरसते हैं। समुद्र के एक बूँद पानी में समुद्र के सभी गुण होते हैं। उसलिए परमेश्वर के छोटे अंश होते हुए भी हम में परमेश्वर के वही शक्तिशाली गुण हैं। आत्मा अणु के बराबर इतनी छोटी होने पर भी हमारे सम्पूर्ण शरीर को आश्चर्यजनक विधियों से कार्य करने के लिए घूमती है। इस संसार में इतने शहर, सडकें, भवन, इमारतें, बड़ी बड़ी संस्कृतियाँ जो कुछ भी हम देखते हैं उसे किसने बनाया है? यह सब सूक्ष्म अलौकिक आत्मा जो शरीर में है उसने बनाया है। यदि ऐसी आश्चर्यजनक चीजें छोटी सी जीवात्मा से बन सकती हैं तो हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं कि सम्पूर्ण परमेश्वर क्या क्या बना सकते हैं। सूक्ष्म जीवात्मा का स्वाभाविक लगाव उन्हीं गुणों में है जो कि परमेश्वर में है - ज्ञान, आनन्द और नित्यता - परन्तु भौतिक शरीर होने के कारण आत्मा की ये इच्छायें पूरी नहीं होतीं और उसे निराशा प्राप्त होती है। आत्मा की इच्छा को पूरा करने के बारेमें भगवद्गीता में बताया गया है। वर्तमान काल में हम एक अपूर्ण साधन (शरीर) से ज्ञान, आनन्द और सनातन जीवन पाने की चेष्टा कर रहें हैं। परन्तु वास्तव में इस भौतिक

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