Book Title: Janma Aur Mrutyu Se Pare
Author(s): A C Bhaktivedant
Publisher: Bhaktivedant Book Trust

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ १४ योग विधि में इस अभ्यास को प्रत्याहार कहते हैं जिसके माने हैं 'पूर्णतया विपरीत'। यद्यपि जीवन में आँखें सांसारिक सौन्दर्य देखने में व्यस्त हैं, परन्तु मृत्यु काल में हर एक इन्द्रिय को उसके विषय से हटाकर आन्तरिक सौन्दर्य देखना चाहिए। इसी प्रकार कान भी इस संसार में अनेक प्रकार की ध्वनि सुनने के अभ्यस्त हैं, परन्तु मृत्यु के समय उसे अन्दर से परम शब्द ओम् सुनना चाहिए। ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन् । य: प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम् ।। (भ.गी. ८:१३) “योग अभ्यास में स्थिर होने के बाद परम पवित्र शब्द ओम् का उच्चारण करके यदि कोई भगवान् के विषय में सोचता है और शरीर छोड़ता है तो वह निश्चय ही वैकुण्ठ लोक पहुँचता है। इस प्रकार सभी इन्द्रियों की बाहरी क्रियाओं को रोकना होगा और भगवान् के रूप विष्णु मूर्ति पर ध्यान लगाना होगा। मन बहुत चञ्चल है परन्तु इसको अपने हृदय में स्थित भगवान् में लगाना होगा। जब मन हृदय के अन्दर स्थिर हो जाता है और जब प्राण वायु सिर में ऊपर तक पहुँच जाता है तब कोई योग में सिद्धि पा सकता है। ___ इस स्तर पर योगी निश्चित करता है कि उसे कहाँ जाना है। इस सांसारिक विश्व में अनेक लोक हैं और इस विश्व के बाहर वैकुण्ठ लोक है। योगियों को वैदिक साहित्य से, इन सभी स्थानों का कुछ ज्ञान है। जिस प्रकार कोई अमरीका जाने से पहले कोई पुस्तक पढ़कर यह ज्ञान ले सकता है कि अमरीका किस प्रकार का देश है इसी प्रकार किसी को भी वैकुण्ठ लोकों का ज्ञान वैदिक साहित्य पढ़कर मिल सकता है। योगी इन सब स्थानों के विषय में जानते हैं और बिना किसी विमान की सहायता के वे जिस लोक में भी जाना चाहें, जा सकते हैं। अन्य लोकों में पहुँचने के लिए यान्त्रिक चीजों की सहायता लेने की विधि शास्त्रों में स्वीकृत नहीं है। शायद बहुत समय तक प्रयत्न करने और बहुत

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64