Book Title: Janma Aur Mrutyu Se Pare
Author(s): A C Bhaktivedant
Publisher: Bhaktivedant Book Trust

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Page 19
________________ मृत्यु के बाद प्रगति अनेक प्रकार के योगी होते हैं जैसे हठ योगी, ज्ञान योगी, ध्यान योगी और भक्ति योगी-ये सब अलौकिक वातावरण में प्रवेश करने योग्य होते हैं। 'योग' शब्द के माने जोड़ना होता है और योग विधि अलौकिक जगत् से सम्बन्ध स्थापन के लिए है। जैसा कि पहले अध्याय में बताया गया है, प्रारम्भ से ही हम सब भगवान से ही सम्बन्धित हैं, परन्तु अब हम सांसारिक मलिनता के प्रभाव में हैं। विधि यह है कि हमें प्रभु के धाम में वापिस जाना है और इस सम्बन्ध को फिर से स्थापित करने की विधि योग कहलाती है। योग शब्द के दूसरे माने धन चिह्न से है। वर्तमान काल में हम भगवान या परम सत्य से घटे हुए हैं। परन्तु जब हम कृष्ण भगवान् को अपने जीवन में जोड़ते हैं तो हमारा मनुष्य जीवन पूर्णता पाता है। __मृत्यु के समय ही हमें पूर्णता की विधि को पूर्ण करना है। इस जीवन में हमें पूर्णता की विधि का अभ्यास करना है जिससे कि मृत्यु काल में जब हमें यह सांसारिक शरीर छोड़ना हो तो इस पूर्णता या सिद्धि का अनुभव कर सकें। - प्रयाणकाले मनसाऽचलेन भक्त्या युक्तो योगबलेन चैव। . भ्रुवोर्मध्ये प्राणमावेश्य सम्यक्स तं परं पुरुषमुपैति दिव्यम्। (भ.गी. ८:१०) “जो मृत्यु कालमें अपनी प्राणवायु को भौंहों के मध्य स्थिर करके भगवान् का भक्ति के साथ स्मरण करते हैं वे निश्चय ही भगवान् को पायेंगे।" जिस प्रकार विद्यार्थी किसी विषय को चार या पाँच वर्ष पढ़ता है

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