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बुद्धिमान व्यक्ति जानता है कि वह दुःख नहीं चाहता है परन्तु ये दुःख उस पर बल पूर्वक डाले जाते हैं। जैसा कि पहले बताया गया है कि हम सदैव मन, शरीर, प्राकृतिक क्रियायें और अन्य जीवों द्वारा दुःखमय स्थिति में रहते हैं। यहाँ सदैव किसी न किसी प्रकार का दुःख हमारे ऊपर आता है। यह संसार दुःख के लिए ही बना है: जब तक दुःख नहीं होता है तब तक हम कृष्ण भावना में नहीं आ सकते हैं। दुःख तो वह शक्ति है, जो हमें कृष्ण भावना में प्रगति करने में सहायता देती है। अगर कोई बुद्धिमान व्यक्ति हो तो वह प्रश्न करता है कि ये दुःख उसके ऊपर बलपूर्वक क्यों डाले जाते हैं ? लेकिन आधुनिक संस्कृति का स्वभाव है, “मुझे दुःख पाने दो। दुःख को मादक वस्तुओं का सेवन करके आवरित कर दें। बस यही।” परन्तु जैसे ही मादकता का प्रभाव समाप्त होता है दुःख वापिस आ जाते हैं। जीवन के दुःखों की समस्या का हल आडम्बरी मादकता से नहीं होता। समाधान तो कृष्ण भावना से होता है। - कोई यह कह सकता है कि कृष्ण भगवान के भक्त कृष्ण लोक में प्रवेश करने का प्रयत्न कर रहे हैं और हमारी इच्छा चन्द्रमा तक जाने की है। क्या चन्द्रमा पर जाना सिद्धि नहीं है ? जीवों में अन्य लोकों की यात्रा करने का स्वभाव सदैव ही है। जीव का एक नाम 'सर्वगत' है जिसके माने है जो हर जगह जाना चाहता है। यात्रा करना जीवों के स्वभाव के अन्तर्गत है। चन्द्रमा में जाने की इच्छा कोई नवीन इच्छा नहीं है। योगी भी ऊँचे लोकों में जाने के इच्छुक हैं परन्तु भगवद् गीता कहती है कि इससे कोई भलाई नहीं है।
आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जुन। मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते॥
(भ.गी. ८:१६) "इस संसार में सबसे ऊँचे लोक (ब्रह्म लोक) से लेकर सबसे नीचे लोक (पाताल लोक) तक सभी जगह दुःखों के स्थान हैं, जहाँ बार-बार जन्म और मृत्यु होती है। परन्तु हे कुन्ती के पुत्र ! जो मेरे