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लड़की जैसी होती है। हर व्यक्ति जानता है कि मूर्ति बनावटी है। श्रीधर स्वामी कहते हैं कि क्योंकि वैकुण्ठ सत्य है, इसलिए यह संसार जो उसकी परछाईं है सत्य लगता है। हमें सत्य के माने जानना चाहिएसत्य के माने वह स्थिति है जो समाप्त नहीं की जा सकती है, सत्य से तात्पर्य सनातन से है:
नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः।। उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः॥
. . (भ.गी. २ :१६) . “जो सत्य के दर्शक हैं उन्होंने सारांश निकाला है कि जो असत्य है वह रह नहीं सकता है और जो सत्य है उसका विनाश नहीं हो सकता है।" तत्त्वर्शियों ने यह सारांश दोनों प्रकृतियों का अध्ययन करके ही निकाला है।
वास्तविक आनन्द कृष्ण भगवान में है और यह सांसारिक आनन्द जो अस्थाई है वह वास्तविक नहीं है। जो चीजों को सही तरह से देख सकते हैं वे परछाईं के आनन्द में भाग नहीं लेते हैं। मनुष्य जीवन का वास्तविक उद्देश्य वैकुण्ठ लोक जाना है, परन्तु जैसा श्रीमद्भागवतम् बताता है कि अधिकांश लोग इस विषय में कुछ नहीं जानते हैं। मनष्य जीवन सत्य को समझने के लिए और उसमें प्रवेश करने के लिए बना है। सभी वैदिक साहित्य यही शिक्षा देते हैं कि अन्धकार में मत रहो। इस संसार का स्वभाव अन्धकारमय है, परन्तु वैकुण्ठ लोक सदैव प्रकाशित है यद्यपि वहाँ बिजली या अग्नि का प्रकाश नहीं है। भगवद् गीता के पन्द्रहवें अध्याय में कृष्ण भगवान् संकेत करते हैं कि
न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः । यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ।।
. (भ.गी. १५:६) “मेरा निवास स्थान सूर्य, चन्द्रमा या विद्युत से प्रकाशित नहीं