Book Title: Janma Aur Mrutyu Se Pare
Author(s): A C Bhaktivedant
Publisher: Bhaktivedant Book Trust

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Page 44
________________ ३७. परिवर्तित होने पर परिवर्तित होती है, उनसे मुक्ति पाने का निश्चय करता है, तो वह भक्ति पा लेता है । भक्ति के माने समझ कर अनुभव करना है कि वह पवित्र आत्मा है भौतिक शरीर नहीं है । हमारा स्वरूप यह शरीर नहीं है जो कि आत्मा का आवरण है परन्तु वास्तविक स्वरूप 'दास' है – कृष्ण भगवान् का सेवक । जब कोई इस वास्तविक पहचान में स्थिर होता है और कृष्ण भगवान् की सेवा में लगा रहता है तो उसे भक्त कहते हैं । 'हृषीकेण हृषीकेश सेवेनम्' – जब हमारी इन्द्रियाँ सांसारिक उपाधियों से मुक्त हों तब हम उन्हें इन्द्रियों के स्वामी हृषीकेश कृष्ण भगवान् की सेवा में उपयोग करेंगे । रूप गोस्वामी कहते हैं कि हमें कृष्ण भगवान् की सेवा उनके हित के लिए करनी चाहिए । साधारणतया हम भगवान् की सेवा कुछ सांसारिक उद्देश्य या लाभ के लिए करते हैं । यद्यपि जो भगवान् के पास सांसारिक भलाई के लिए जाता है वह उनसे कहीं अच्छा है जो भगवान् के पास कभी नहीं जाते हैं परन्तु हमें सांसारिक हित की इच्छा से मुक्त होना चाहिए। हमारा उद्देश्य कृष्ण भगवान् को समझना होना चाहिए । यद्यपि कृष्ण भगवान् अनन्त हैं और उन्हें समझना सम्भव नहीं है परन्तु जो भी हम समझते हैं हमें उसे स्वीकार करना चाहिए। भगवद् गीता विशेष रूप से हमारे समझने के लिए दी गई है । इस प्रकार ज्ञान लेने से, हमें जानना चाहिए कि कृष्ण भगवान् प्रसन्न होते हैं, और उनके आनन्द के लिए उनके हित के साथ उनकी सेवा करनी चाहिए । कृष्ण भावना एक विज्ञान है जिसमें अनन्त साहित्य है और इनका उपयोग हमें भक्ति पाने के लिए करना चाहिए । 'पुरुषः स परः' अलौकिक लोक में परमेश्वर परम पुरुष के रूप में हैं। वहाँ अगणित स्वयं प्रकाशित लोक हैं और हर एक में कृष्ण भगवान् का एक विष्णु रूप निवास करता है । वे चार हाथ वाले हैं और उनके अगणित नाम हैं । वे पूर्ण पुरुष हैं, निर्विशेष नहीं हैं । ये पुरुष केवल भक्ति से ही पाये जा सकते हैं, पडकार विचारों, मानसिक

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