Book Title: Janma Aur Mrutyu Se Pare
Author(s): A C Bhaktivedant
Publisher: Bhaktivedant Book Trust

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Page 48
________________ ४१ हैं और टिकट के कारण हमें विश्वास हो जाता है कि हमें वहाँ ले जाया जायेगा । हम टिकट के लिए धन क्यों दें? हम हर किसी को तो धन नही देते हैं। कम्पनी मानी हुई है, वायु- सेवा मानी हुई है इसलिए विश्वास उत्पन्न हो जाता है। हम साधारण जीवन में बिना विश्वास किये एक कदम आगे नही बढ़ सकते हैं। हमे विश्वास होना चाहिए परन्तु वह विश्वास किसी मानी हुई वस्तु पर होना चाहिए। यह नहीं कि हमें अन्ध विश्वास है, हम उसी को स्वीकार करते है जो माना हुआ है। भगवद्गीता माना हुआ शास्त्र है और भारत में हर श्रेणी के लोग इसे शास्त्र के रूप में स्वीकार करते हैं और जहाँ तक भारत के बाहर का प्रश्न है अनेकों विद्यार्थियों ने, धर्मवेत्ताओं ने, और विचारकों ने भगवद्गीता को महान पुस्तक माना है । भगवदगीता की महानता पर कोई प्रश्न नही है। अल्बर्ट आइन्स्टीन जैसे वैज्ञानिक नित्य भगवद्गीता पाठ करते थे 1 भगवदगीता से हमें स्वीकार करना होगा कि वैकुण्ठ लोक है जो भगवान का राज्य है। यदि हमें किसी प्रकार उस देश मे ले जाया जाये जहाँ हमे सूचना मिले कि हमें जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी के चक्र मे फिर से नहीं आना पड़ेगा तो क्या हम सुखी नहीं होंगे? यदि हमे ऐसे स्थान के विषय में सूचना मिले तो अवश्य ही हम वहाँ पहुँचने के लिए जितना प्रयत्न करना सम्भव हो करेंगे। कोई वृद्ध होना नहीं चाहता है, कोई मरना नहीं चाहता है, वास्तव में वह जगह जो इन दुःखों से दूर हो वहाँ जाने की ही हमारे हृदय में इच्छा होगी। हम इसे क्यों चाहते हैं? क्योंकि हमें अधिकार है यही हमारी मुख्य सुविधा है और हम वही चाहते हैं। हम सनातन हैं, आनन्दमय हैं, ज्ञान से पूर्ण हैं परन्तु सांसारिक बन्धन मे फँस गये हैं, हम अपने आप को भूल गये हैं।

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