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यद्यपि मनुष्य पूरी तरह से अचेतन हो या सो रहा हो, वह न देख सकता हो, न अनुभव कर सकता हो, न सूंघ सकता हो इत्यादि- परन्तु सुनने की इन्द्रियाँ इतनी प्रभाव शाली हैं कि सोता हुआं व्यक्ति केवल शब्द ध्वनि से ही जगाया जा सकता है। इसी प्रकार आत्मा जो सांसारिक स्पर्श की निद्रा के वश में है वह हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।" की परम ध्वनि से जाग्रत की जा सकती है। हरे कृष्ण मन्त्र भगवान और उनकी शक्ति को सम्बोधित करता है। 'हरे' से तात्पर्य शक्ति से है और कृष्ण के माने भगवान से है, इसलिए जब हम हरे कृष्ण का कीर्तन करते हैं तो हम कहते हैं,"हे भगवान की शक्ति, हे भगवान, मुझे स्वीकार करो" हमारे पास भगवान् द्वारा स्वीकृत किये जाने के लिए इस महामन्त्र के अतिरिक्त कोई अन्य प्रार्थना नहीं है। रोज के भोजन के लिए प्रार्थना करने का कोई प्रश्न नहीं है भोजन तो सदैव ही है। 'हरे कृष्ण' भगवान को सम्बोधन करके प्रार्थना करने के लिए है कि वे हमे स्वीकार करें। चैतन्य महाप्रभु ने स्वय प्रार्थना की थी।
अयि नन्दतनुज किङ्कर पतितं मा विषमे भवाम्बुधौ। कृपया तव पाद पङकजस्थितधूलीसदृशं विचिन्तय ।।
(शिक्षाष्टकम-५)
"हे नन्द महाराज के पुत्र मै आपका सनातन दास हूँ और ऐसा होने के बावजूद भी मैं किसी न किसी तरह इस जन्म और मृत्यु के सागर में गिर गया हूँ। कृपा करके आप मुझे इस जन्म और मृत्यु के सागर से ऊपर उठाइये और अपने चरणों की धूल में रखिये।" समुद्र के मध्य पड़े व्यक्ति की केवल यही आशा होती है कि कोई