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यह पहले ही कहा जा चुका है कि यदि कोई मृत्यु के समय कृष्ण भगवान् के विषय में सोचे तो वह तुरन्त ही कृष्ण लोक भेजा जाता है।
अन्तकाले च मामेव स्मरणन्मुक्त्वा कलेवरम्। यः प्रयाति स मद्भाव याति नास्त्यत्र संशयः।।
. (भ.गी.८:५) अभ्यासयोगयुक्तेन चेतसा नान्यगामिना।। परमं पुरुषं दिव्यं याति पार्थानुचिन्तयन्।।
(भ. गी.८:८) "जो मृत्यु के समय मेरा स्मरण करके शरीर छोड़ता है वह तुरन्त मेरी प्रकृति पा लेता है। इसमें कोई संशय नहीं है। हे अर्जुन, जो परमेश्वर का ध्यान करता है, जिसका मस्तिष्क सदैव मेरे स्मरण में व्यस्त रहता है और जो इस मार्ग से नहीं हटता है वह निश्चय ही मेरे पास पहुँचता है।"
कृष्ण भगवान में ऐसा ध्यान लगाना कठिन लगता है परन्तु वास्तव में यह ऐसा नहीं है। यदि कोई हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे- इस महा मन्त्र का कीर्तन करते करते कृष्ण भावना का अभ्यास करे तो भगवान उसकी सहायता तुरन्त करेंगे। कृष्ण भगवान और उनका नाम विभिन्न नहीं है। कृष्ण भगवान और उनका निवास स्थान भी विभिन्न नहीं है। शब्द ध्वनि से हम कृष्ण भगवान की सङगत में रह सकते हैं। उदाहरण के लिए जब हम सडक पर हरे कृष्ण का कीर्तन करते है तो कृष्ण भगवान हमारे साथ चलते हैं जैसे जब हम ऊपर देखते हैं तो हमें लगता है कि चन्द्रमा हमारे साथ चल रहा है। यदि भगवान कृष्ण की माया क्ति हमारे साथ चलती है तो क्या यह सम्भव नहीं है कि