Book Title: Janma Aur Mrutyu Se Pare
Author(s): A C Bhaktivedant
Publisher: Bhaktivedant Book Trust

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Page 40
________________ परन्तु वास्तव में बादल बहुत छोटा है और उसने सम्पूर्ण आकाश के बहुत ही छोटे और महत्वहीन अंश को ढका है। क्योंकि हम इतने छोटे हैं कि यदि बादलों द्वारा कुछ सौ मील तक ढके जाते हैं तो हमें प्रतीत होता है कि सम्पूर्ण आकाश ढका है। इसी प्रकार सम्पूर्ण भौतिक विश्व अनन्त परव्योम में (वैकुण्ठ में) एक छोटे से महत्वहीन बादलोंके टुकड़े जैसा है। यह भौतिक विश्व महत्तत्त्व के अन्दर बँधा है। जैसे बादलों का प्रारम्भ और अंत होता है उसी प्रकार इस भौतिक विश्व का प्रारम्भ और अंत होता है, जब बादल हट जाते हैं आकाश साफ हो जाता है तो हम हर चीज को साफ-साफ देख सकते हैं। इसी प्रकार . शरीर जीवात्मा पर बादलों की तरह बहता है। वह कुछ समय रहता है; कुछ वैसी ही चीजें उत्पन्न करता है, सड़ता है और अन्त में समाप्त हो जाता है। किसी सांसारिक क्रिया को जिसे हम देखते हैं उसमें छ: परिवर्तन होते हैं-वह उत्पन्न होती है, बढ़ती है, कुछ समय तक रहती है, कुछ वैसी चीजें उत्पन्न करती है, सड़ती है और समाप्त हो जाती है। कृष्ण भगवान् कहते हैं कि बादल जैसी परिवर्तनशील प्रकृति के परे अलौकिक प्रकृति है, जो सनातन है। इसके अतिरिक्त जब यह सांसारिक प्रकृति समाप्त हो जायेगी तब वह 'अव्यक्तात् सनातन' रहेगा। वैदिक साहित्य में इस संसार और वैकुण्ठ के विषय में अनेकों विवरण हैं। श्रीमद्भागवतम् के दूसरे स्कन्ध में वैकुण्ठ लोक और उसके निवासियों का वर्णन है। यहाँ तक माहिती है कि वैकुण्ठ में अलौकिक विमान हैं और मुक्त जीव इन लोकों में आकाश की बिजली की तरह तेजी से यात्रा भी कर सकते हैं। जो भी चीज हम यहाँ देखते हैं वह वास्तविकता में वहाँ लाई जा सकती है। इस संसार में हर चीज वैकुण्ठ की विकृत परछाईं या नकल जैसी है। जैसे सिनेमा में हम केवल वास्तविक. चीज की परछाईं या छवि देखते हैं। श्रीमद्भागवतम् में लिखा है कि यह संसार द्रव्यों का संयोग है जो वास्तविकता के आधार पर उसके जैसा बना है। जैसे दुकान की खिड़की पर लड़की की मूर्ति वास्तविक

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