Book Title: Janma Aur Mrutyu Se Pare
Author(s): A C Bhaktivedant
Publisher: Bhaktivedant Book Trust

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Page 38
________________ । - "जब ब्रह्मा का दिन प्रगट होता है सभी जीव व्यक्त हो जाते हैं और ब्रह्मा की रात्रि में फिर से उनका नाश होता है।" - ब्रह्मा के दिन के अन्त में सभी नीचे के लोक पानी से ढक जाते हैं और उनके सभी जीवों का विनाश हो जाता है। इस प्रलयं के बाद ब्रह्मा की रात्रि समाप्त होने के बाद प्रात: काल जब ब्रह्मा सोकर उठते हैं तब फिर से सृष्टि होती है और सभी जीव उत्पन्न हो जाते हैं। इस प्रकार सृष्टि और प्रलय इस संसार का स्वभाव है। भूतग्रामः स एवायं भूत्वा भूत्वा प्रलीयते। रात्र्यागमेऽवशः पार्थ प्रभवन्त्यहरागमे ।। (भ.गी. ८:१६) _ “ओ पृथा के पुत्र ! बार-बार दिन आता है और सभी जीव क्रियाओं में लग जाते हैं और फिर रात्रि आती है और सभी जीवों का लाचारी से विनाश हो जाता है।" यद्यपि जीव प्रलय नहीं चाहते हैं फिर भी प्रलय आयेगी और सभी लोकों में बाढ़ आयेगी जिससे उन लोकों के सभी जीव ब्रह्मा की रात्रि में पानी में डूबे रहेंगे। परन्तु जैसे ही दिन आता है पानी चला जाता है। परस्तस्मात्तु भावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातनः । यः स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति ।। ' (भ.गी. ८:२०) "लेकिन एक दूसरी प्रकृति भी है जो सनातन है, वह इस व्यक्त और अव्यक्त भूतों से परे है। वह परम है और कभी नष्ट नहीं होती है। जब इस संसार में सब चीज का विनाश हो जाता है तब भी वह मात्र वैसा ही रहता है जैसा था।" - हम इस भौतिक विश्व की सीमाओं की गणना नहीं कर सकते हैं परन्तु हमारे पास वैदिक माहिती है जिससे मालूम होता है कि सम्पूर्ण सृष्टि में करोड़ों लोक हैं और इन सांसारिक लोकों के परे

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