Book Title: Janma Aur Mrutyu Se Pare
Author(s): A C Bhaktivedant
Publisher: Bhaktivedant Book Trust

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Page 37
________________ ४ परव्योम-भगवद् धाम का आकाश ___ यदि इस विश्व के ऊँचे लोकों में भी जन्म और मृत्यु है तो महान् योगी वहाँ जाने की क्यों चेष्टा करते हैं ? यद्यपि.उनके पास अनेकों सिद्धियाँ होती हैं, फिर भी योगियों में भौतिक जीवन की सुविधाओं का आनन्द लेने का स्वभाव होता है। ऊँचे लोकों में बहुत लम्बी अवधि का जीवन सम्भव होता है। इन लोकों के समय की गणना कृष्ण भगवान् ने भगवद् गीता में दी है : . सहस्रयुगपर्यन्तमहर्यद्ब्रह्मणो विदुः । रात्रियुगसहस्रान्तां तेऽहोरात्रविदो जना : ।। (भ.गी. ८:१७) ___ “मनुष्य लोक के हिसाब से ब्रह्मा का एक दिन हजार युगों का होता है और ऐसी ही उनकी रात्रि होती है।" ___ एक युग ४३ लाख वर्ष का होता है। इस संस्था को एक हजार से गुणा करके हमें ब्रह्म लोक में ब्रह्मा के बारह घण्टों का ज्ञान होता है। इसी प्रकार के दूसरे बारह घण्टे ब्रह्मा की रात्रि होती है। ऐसे तीस दिन एक महीना होते हैं और बारह महीने एक वर्ष होता है और ब्रह्मा ऐसे सौ वर्षों तक जीवित रहते हैं। ऐसे लोकों में जीवन वास्तव में बहुत लम्बा होता है परन्तु ऐसे अरबों वर्षों के उपरान्त भी ब्रह्म लोक के जीवों को मृत्यु का सामना करना पड़ता है। जब तक हम इस संसार से परे के लोक में नहीं जाते हैं, मृत्यु से कोई बचाव नहीं है। अव्यक्ताद्व्यक्तयः सर्वाः प्रभवन्त्यहरागमे। रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके। (भ.गी. ८:१८)

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