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के अनुसार तो नहीं। भगवद् गीता के अनुसार जिनकी बुद्धि बहुत छोटी है वे अस्थाई चीजें चाहते हैं। हम सनातन हैं, इन अस्थाई चीजों के इच्छुक क्यों हैं ? कोई भी अस्थाई स्थिति नहीं चाहता है। यदि हम किराये के मकान में रहते हैं और मकान मालिक मकान खाली करने को कहे तो हमें दुःख होगा, परन्तु जब हम अच्छे मकान में जाते हैं तो हमें शोक नहीं होता है। यह हमारा स्वभाव है, क्योंकि हम सनातन हैं, इसलिए हम सनातन निवास स्थान चाहते हैं। हम मरना नहीं चाहते हैं क्योंकि वास्तव में हम सनातन हैं । हम वृद्ध होना और बीमार होना भी नहीं चाहते हैं क्योंकि ये बाहरी और अस्थाई स्थितियाँ हैं। यद्यपि हम ज्वर से दुःखी होने के लिए नहीं बने हैं फिर भी कभीकभी ज्वर आता है और हमें ठीक होने के लिए चिकित्सा करवानी पड़ती है और सावधानियाँ अपनानी पड़ती हैं। चार प्रकार के दुःख जैसे ज्वर आदि ये सब इस भौतिक शरीर के कारण हैं। यदि किसी प्रकार हम इस शरीर से निकल जाएँ तो सभी दुःखों से छुटकारा पा लेंगे, जो इस शरीर के साथ हैं।
निविशेषवादियों को इस शरीर से मुक्ति पाने के लिए यहाँ कृष्ण भगवान् ‘ओम' शब्द का उच्चारण करने की सलाह दे रहे हैं । इस प्रकार उनका अलौकिक विश्व में जाना निश्चित हो जाता है। फिर भी, यद्यपि वे अलौकिक विश्व में प्रवेश करते हैं, वे वहाँ किसी वैकुण्ठ लोक में प्रवेश नहीं कर सकते हैं। वे बाहर ब्रह्मज्योति में रहते हैं। ब्रह्म ज्योति की तुलना सूर्य के प्रकाश से की जा सकती है और वैकुण्ठ लोक की तुलना सूर्य लोक से की जा सकती है। वैकुण्ठ में निर्विशेषवादी लोग भगवान् की ज्योति, ब्रह्म-ज्योति में रहते हैं। निर्विशेषवादी ब्रह्म ज्योति में सच्चिदानन्द-ज्योति की भाँति रहते हैं और इस प्रकार ब्रह्म ज्योति इन ब्रह्म चिंगारियों से भरी होती है। ब्रह्म स्तर में मिल जाने का यही अर्थ है। किसी को यह नहीं समझना चाहिए कि ब्रह्म ज्योति में मिलने के माने ब्रह्म ज्योति से एक हो जाने से है ; हर चिंगारी