Book Title: Janma Aur Mrutyu Se Pare
Author(s): A C Bhaktivedant
Publisher: Bhaktivedant Book Trust

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Page 32
________________ २५ तो कृष्ण भगवान् उसे नहीं भूल सकते हैं । नम्र होकर ही वह भगवान् का ध्यान आकर्षित कर सकता है। जैसा हमारे गुरु महाराज भक्तिसिद्धान्त सरस्वती कहा करते थे, “भगवान् को देखने का प्रयत्न मत करो। क्या वे नौकरों की तरह हमारे सामने आकर खड़े हो जायें क्योंकि हम उन्हें देखना चाहते हैं ? यह नम्रता की विधि नही है। हमें उन्हें प्रेम और सेवा से आने के लिए आभारित करना होगा।" ___कृष्ण भगवान् को पाने की सही विधि मानवता को चैतन्य महाप्रभु ने दी थी और उनके प्रथम शिष्य रूप गोस्वामी ने इसको सबसे अच्छा समझ लिया था । रूप गोस्वामी मुसलमान राज्य में मन्त्री थे और चैतन्य महाप्रभु के शिष्य बनने के लिए राज्य मन्त्री की पदवी छोड़ दी थी। जब वे सर्वप्रथम महाप्रभु को देखने गये थे तब वे निम्नलिखित श्लोक का उदाहरण करते हुए उनके समीप पहुँचे थे : नमो महा वदान्याय कृष्णप्रेमप्रदायते। कृष्णाय कृष्णचैतन्यनाम्ने गोरत्विषे नमः ।। . “चैतन्य महाप्रभु जो कि अन्य सभी अवतारों से सबसे अधिक दयालु हैं यहाँ तक कि कृष्ण भगवान् से भी क्योंकि वे बिना किसी भेद के कृष्ण के शुद्ध प्रेम का वितरण कर रहे हैं जिसका पहले किसी और ने नहीं किया है। मैं उनके चरणों में शरण लेता हूँ।" ___ रूप गोस्वामी ने चैतन्य महाप्रभु को बहुत दयावान पुरुष कहा था क्योंकि वे सबसे मूल्यवान चीज-कृष्ण प्रेम को बहुत सरलता से बाँट रहे हैं। हम सब कृष्ण भगवान् को चाहते हैं और उनकी खोज में लगे हैं। कृष्ण भगवान् सबसे ज्यादा आकर्षक हैं, सबसे अधिक सुन्दर हैं, सबसे ज्यादा ऐश्वर्य वाले हैं, सबसे ज्यादा शक्तिशाली हैं और सबसे अधिक ज्ञानी हैं। इन्हीं चीजों को पाने का हम प्रयत्न कर रहे हैं। हम सुन्दर शक्तिशाली ज्ञानी और धनवान को ढूँढ़ रहे हैं। कृष्ण भगवान् इन चीजों के सरोवर हैं इसलिए हमें केवल अपने ध्यान को उनकी ओर ले जाने की आवश्यकता है और हमें हर चीज

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