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भौतिक संसार से मुक्ति
ज्ञानी और योगी साधारणतया निर्विशेषवादी होते हैं और यद्यपि उन्हें मुक्ति का अस्थाई रूप अव्यक्त ब्रह्म ज्योति में प्रवेश मिल जाता है ; परन्तु श्रीमद्भागवतम् के अनुसार उनका ज्ञान शुद्ध नहीं माना गया है। वे परम सत्य के स्तर में ब्रह्मचर्य कठोर तपस्यायें और ध्यान करके पहुँच जाते हैं परन्तु जैसा कि पहले बताया गया है कि वे इस संसार में फिर से गिर जाते हैं क्योंकि उन्होंने कृष्ण भगवान के साकार रूप को गम्भीरता से नहीं लिया है। जब तक कोई कृष्ण भगवान् के चरणारविन्द की पूजा नहीं करता है तब तक उसे सांसारिक स्तर में उतरना पड़ेगा। इसलिए सबसे आदर्श तरीका यह है, “मैं आपका सेवक हूँ कृपा करके अपनी सेवा में लगाइये"। कृष्ण भगवान् अजित हैं यानी वे जीते नहीं जा सकते हैं। कोई भगवान को नहीं जीत सकता है परन्तु श्रीमद्भागवतम् के अनुसार जिसने ऐसा स्वभाव बना लिया है वह भगवान पर सरलता से विजय पा सकता है। श्रीमद्भागवतम् भी यह सलाह देता है कि हमें भगवान् को नापने की व्यर्थ की विधि को छोड़ देना चाहिए। हम इस आकाश की सीमाओं तक को नहीं नाप सकते हैं तो परमेश्वर का क्या कहना। कृष्ण भगवान की लम्बाई
और चौड़ाई को नाप लेना इस मन से सम्भव नहीं है और जो इस सारांश पर पहुँच गया है वह वैदिक साहित्य के अनुसार बुद्धिमान है। हर एक को बहुत ही नम्रता के साथ यह समझना चाहिए कि वह इस विश्व का बहुत ही अमहत्वपूर्ण अंश है। हमें परमेश्वर को अपने सीमित ज्ञान या मानसिक कल्पनाओं से समझने की चेष्टाओं को छोड़ कर,