Book Title: Janma Aur Mrutyu Se Pare
Author(s): A C Bhaktivedant
Publisher: Bhaktivedant Book Trust

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Page 23
________________ पृथ्वी की अपेक्षा शरीर अधिक समय तक जीवित रहता है और ऊँचे लोकों (स्वर्ग लोक) में एक दिन पृथ्वी के छः महीनों के बराबर होता है। इसलिए वेद वर्णन करते हैं कि जो लोग ऊँचे लोकों में रहते हैं वे इस पृथ्वी के दस हजार वर्षों से भी अधिक समय तक जीवित रहते हैं, फिर भी इतनी लम्बी आयु के बाद भी मृत्यु हर एक की प्रतीक्षा करती है। यद्यपि कोई बीस हजार या पचास हजार या लाखों वर्ष जीवित रहे, फिर भी इस संसार में वर्षों की गिनती हो जायेगी और मृत्यु होगी। मृत्यु के चंगुल से कैसे बचें? यह शिक्षा भगवद् गीता में दी गई है। . न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः। अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥ (भ.गी. २:२०). “आत्मा के लिए कभी भी जन्म या मृत्यु नहीं है, एक बार होकर ऐसा नहीं हो सकता है कि वह न रहे। उसका जन्म नहीं होता है, ' वह सनातन है, सदैव रहने वाला है, न मरने वाला है, प्रमुख है। उसकी हत्या नहीं होती है जबकि शरीर की हत्या होती है। हम आत्मा हैं और इसलिए सनातन हैं। तो हम अपने को जन्म और मृत्यु के विषय में क्यों फँसाते हैं ? जो यह प्रश्न पूछता है वह बुद्धिमान माना जाता है। जो लोग कृष्ण भावना में हैं वे लोग बहुत बुद्धिमान हैं, क्योंकि वे लोग उन लोकों में जाने के इच्छुक नहीं हैं जहाँ मत्य होती है। वे भगवान के समान शरीर पाने के लिए, लम्बी अवधि वाला स्वर्गलोक का जीवन भी स्वीकार नहीं करेंगे। “ईश्वर: परम: कृष्णः सच् चिद् आनन्द विग्रहः” । सत् के माने सनातन, चित् के माने पूर्ण ज्ञान और आनन्द के माने पूर्ण सुख है। कृष्ण भगवान् आनन्द के सागर हैं । यदि हम अपने आपको इस संसार से कृष्ण लोक या वैकुण्ठ लोक में ले जायें तो हमें उसी प्रकार का सत् चिद् आनन्द शरीर मिलेगा। इसलिए जो कृष्ण भावनामय हैं, उनका उद्देश्य उनका मित्र है जो कि

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