Book Title: Janma Aur Mrutyu Se Pare
Author(s): A C Bhaktivedant
Publisher: Bhaktivedant Book Trust

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Page 24
________________ १७ इस संसार के ऊँचे लोकों में प्रगति करने का प्रयास कर रहे हैं। .. हर एक का आत्मा सूक्ष्म और सच्चिदानन्द है। योग की सिद्धि इस बात पर निर्भर करती है कि इस आत्मा को सिर के ऊपरी भाग में कैसे ले जायें। इस स्तर पर आने के बाद योगी अपने आप को अपनी इच्छा के अनुसार इस संसार के किसी भी लोक में ले जा सकता है। यदि योगी की जिज्ञासा यह जानने की है कि चन्द्रमा किस प्रकार का है तो वह वहाँ जा सकता है, या यदि वह ऊँचे लोकों में जाने को इच्छुक हो तो वह वहाँ भी जा सकता है जैसे यात्री न्यूयार्क, कैनड़ा या इस पृथ्वी के अन्य नगरों में जाते हैं । इस पृथ्वी पर कहीं भी जाओ, हर जगह प्रवेश की आज्ञा और आयात-कर की समान विधि मिलेगी। इसी प्रकार सभी सांसारिक लोकों में जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी के सिद्धान्त देखने को मिलेंगे। __“ओम इति एकाक्षरं ब्रह्म" मृत्यु के समय योगी 'ओम्' शब्द का उच्चारण कर सकता है। ओम् परम शब्द ध्वनि का संक्षिप्त रूप है। यदि योगी इस ध्वनि का उच्चारण करता है और कृष्ण या विष्णु भगवान् का स्मरण (मामनु-स्मरन्) करता है तो वह सबसे ऊँची गति पाता है। योग की विधि विष्णु का ध्यान करना है। निर्विशेषवादी भगवान् के किसी रूप की कल्पना करते हैं परन्तु वैष्णव कल्पना नहीं करते हैं बल्कि वास्तव में देखते हैं। यदि कोई कल्पना करे या वास्तव में देखे, हर एक को कृष्ण भगवान् के रूप पर ध्यान लगाना होगा। अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः। तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः ।। (भ.गी. ८:१४) "हे पृथा के पुत्र ! जो सदैव मेरा ध्यान करता है वह मुझे बहुत सरलता से पा लेता है। क्योंकि वह सदैव भक्ति योग में व्यस्त है।" जो चपल जीवन, चपल सुख और चपल सुविधाओं से सन्तुष्ट है उसे बुद्धिमान नहीं माना जा सकता है, कम से कम भगवद् गीता

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