Book Title: Janma Aur Mrutyu Se Pare
Author(s): A C Bhaktivedant
Publisher: Bhaktivedant Book Trust

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Page 20
________________ और फिर परीक्षा में बैठता है और अन्त में उपाधि पाता है। इसी प्रकार जीवन के विषय में यदि हम मृत्यु काल की परीक्षा के लिए • अभ्यास करें और यदि हम परीक्षा में सफल हो जायें तो हम अलौकिक जगत् में भेजे जायेंगे। हमारे सम्पूर्ण जीवन की परीक्षा मृत्यु काल में होती है। यं यं वापि स्मरन्भाव त्यजत्यन्ते कलेवरम्। तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः।। . (भ.गी. ८:६) “शरीर छोड़ते समय जिस स्थिति का वह स्मरण करता है वह स्थिति वह बेशक पा लेता है।" . बंगाली में कहावत है कि यदि कोई सिद्धि के लिए कुछ करता है तो उसकी परीक्षा मृत्यु के समय ही होती है। भगवद् गीता में कृष्ण . भगवान् बतलाते हैं कि शरीर छोड़ते समय किसको क्या करना चाहिए। ध्यान योगी के लिए कृष्ण भगवान् निम्नलिखित श्लोक बताते हैं: यदक्षरं वेदविदो वदन्ति विशन्ति यद्यतयो वीतरागाः। यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति तत्ते पदं संग्रहेण प्रवक्ष्ये। सर्वद्वाराणि संयम्य मनो हृदि निरुध्य च। मूाधायात्मनः प्राणमास्थितो योगधारणां ।। (भ.गी. ८:११,१२). “वे व्यक्ति जिन्हें वेदों का ज्ञान है, जो सन्यास धर्म में महान् ऋषि हैं, और जो ओम् शब्द का उच्चारण करते हैं, वे ब्रह्म में प्रवेश करते हैं। ऐसी सिद्धि पाने के लिए वे ब्रह्मचर्य जीवन का अभ्यास करते हैं। अब मैं तुम्हें वह विधि बताऊँगा जिससे व्यक्ति इस संसार से मुक्ति पा सकता है। योगी की स्थिति सभी इन्द्रियों के विषयों से विरक्त रहना है। इन्द्रियों के सभी प्रवेश द्वारों को बन्द करके, मन को हृदय में लगा कर, प्राण वायु को सिर के ऊपर चढ़ा कर योगी अपने आप को योग में स्थिर करता है।"

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