Book Title: Janma Aur Mrutyu Se Pare
Author(s): A C Bhaktivedant
Publisher: Bhaktivedant Book Trust

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Page 18
________________ गुणानेतानतीत्य त्रीन्देही देहसमुद्भवान्। जन्ममृत्युजरादुःखैविमुक्तोऽमृतमश्नुते॥ - (भ.गी. १४:२०) "जब बन्धन वाले जीव सत्त्व, रजस् और तमस् इन गुणों को पार कर लेते हैं तो वे जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था के दुःखों से मुक्ति पाते हैं और इसी जीवन में अमृत का आनन्द ले सकते हैं।" __ अपने को 'ब्रह्म भूत' या भगवद् ज्ञान के स्तर में स्थित करने के लिए, तीनों गुणों से ऊपर चढ़ने के लिए हमें कृष्ण भावना की विधि स्वीकार करनी होगी। श्रीचैतन्य महाप्रभू का उपहार यह महामन्त्र "हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे" का कीर्तन इस विधि की सुविधा देता है। यह विधि भक्ति योग या मन्त्र योग कहलाती है और सर्वश्रेष्ठ योगी इस विधि का उपयोग करते हैं। किस प्रकार योगी अपनी पहचान जन्म मृत्यु के चक्र और भौतिक शरीर के बाहर अनुभव करते हैं और इस संसार से वैकुण्ठ लोक जाते हैं वह अगले अध्याय का विषय है।

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