Book Title: Janma Aur Mrutyu Se Pare
Author(s): A C Bhaktivedant
Publisher: Bhaktivedant Book Trust

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Page 13
________________ धीयते।। आत्मा में स्थिर नहीं हो सकता है। शारीरिक आनन्द चञ्चल और . प्रमादी है और हम वास्तव में आनन्द नहीं ले सकते हैं क्योंकि इसका स्वभाव क्षणिक है। वास्तविक आनन्द आत्मा का है शरीर का नहीं है। हमें अपने जीवन को इस तरह मोडना है कि जिससे हम शारीरिक आनन्द की ओर न जायें। यदि किसी प्रकार हम हट गये तो हमारे लिए, जो शरीर से परे हमारे वास्तविक स्वरूप में अपनी भावना को स्थिर करना सम्भव नहीं है। भोगैश्वर्य प्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम्। व्यवसायात्मिका बुद्धिः समाधौ न विधीयते।। वैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन। निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्।। (भगवद्गीता-२-४४-४५) "जो इन्द्रियों के आनन्द और सांसारिक ऐश्वर्य से मोह रखते हैं और ... जो इन चीजों के मोह में फंसे हुए हैं,वे भगवान् की भक्ति में दृढ़ता के साथ नहीं लग सकते हैं। वेद तीन गणो के विषय का वर्णन करते हैं। हे अर्जुन,इन गुणों के उपर चढो। द्वन्द्व से मुक्त होकर, लाभ और रक्षा की परेशानी से मुक्त होकर आत्मा में स्थिर हो।" 'वेद' शब्द के माने ज्ञान की पुस्तकों से है। ज्ञान की अनेक पुस्तकें हैं जो कि देश,जनता,और वातावरण के अनुसार बदलती रहती हैं। भारत में ज्ञान की पुस्तकों से तात्पर्य वेदों से होता है। पाश्चत्य देशो में 'ओल्ड टेस्टामेन्ट' या 'न्यू टेस्टामेंन्ट कहलाते हैं। मुसलमान लोग 'कुरान' को स्वीकार करते हैं। इन सब ज्ञान की पुस्तकों का क्या उद्देश्य है? ये सभी हमें अपनी वास्तविक पहचान आत्मा की शिक्षा देने के लिए हैं। इनका उद्देश्य कछ नियमों और विधियों से शारीरिक क्रियाओं को नियमित करना है और ये विधि और नीति शास्त्र के सिद्धान्त कहलाते हैं। उदाहरण के लिए अपने जीवन को नियमित करने के लिए बाइबिल में दस आज्ञायें हैं। उँची सिद्धि पाने के लिए

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