Book Title: Jainetar Drushtie Jain
Author(s): Amarvijay
Publisher: Dahyabhai Dalpatbhai

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Page 9
________________ (२) निवृत्तिमार्गनां वचनोने प्रगट करी तेओए लोकोने ते तरफ दोरेला छे पण ते मुख्य पुरुषोनो अभाव थया पछी तेमना अनुयायीओने ते हिंसक लोकोए पोतानी चालती हिंसक प्रवृत्तिनी प्रथामा भेलसेलज करी दीधा छे,पण ते भक्तिमार्गमां के निवृत्तिमार्गमां शुद्धपणे रहेवा दीधा नथी. हिंसक प्रवृत्तिमां भळेला पाछा फरीथी हिंसक रूप तामसी कोटडीमांथी निकळवा पामे नहीं तेवा हेतुथी अनेक - प्रकारनी वाग्जाल पण करी मुकेली छे, जेमके " स्वधर्म निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः " पुनः " हस्तिना ताज्यमानोऽपि न गच्छेज्जैनमंदिरं" इत्यादि अनेक प्रकारथी एवा फसाव्या छे के जेथी अज्ञानवर्ग कोइ पण प्रकारथी सत्यधर्मनो आश्रय मेळवी शके नहीं. खरु जोतां स्वार्थीलोकोए सत्यधर्मथी वंचित राखी केवळ स्वार्थ साधवाने माटेज आ प्रपंच रचेलो होय एम लागे छे, परंतु आ अंग्रेजोना राज्यमां ते वागजालनु मान स्वभावधीज ओछु थतुं जाय छे ए पण एक समयनीज बलिहारी छे ॥ हवे आपणे विचार करवानो ए छे के, जे धर्ममां पोतार्नु अने बीजा जीवोर्नु सर्व प्रकारथी हित समाएलु होय, अने ते धर्म निःस्वार्थी एवा पूर्णतत्त्वज्ञानीना मुखथी प्रगट थयेलो होय, अने ते सत्यधर्म प्राचीन कालथी चालतो आवेलो होय, तेवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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