Book Title: Jainetar Drushtie Jain Author(s): Amarvijay Publisher: Dahyabhai Dalpatbhai View full book textPage 8
________________ ॥ प्रस्तावना॥ ॐ श्री स्यावादिने नमः। प्रिय वाचको ! लोकोने बोध थवाना हेतुथी आ पुस्तकमां लेखोनो संग्रह करवामां आव्यो छे, दुनीया " शांतिनो " मार्ग ढूंढे छे पण बीजा जीवोर्नु अहित करीने जो पोते शांति मेळववा चाहतो होय तो ते केवल भ्रांतिमय छे. कदाच पूर्व पुण्यना प्रबल संयोगोथी वर्तमानकालमां विघ्न देखी शकतो न होय, पण परभवमां तो ते पापर्नु प्रायश्चित भोगव्या विना छुटको थायन नहीं; एम सर्वे धर्मना शास्त्रो पोकारी पोकारीने कही रह्यां छे. माटे पोताना आत्माने आ भवमां तेमन परभवमां शांतिमय बनाववानी इच्छा होय तेवा महापुरुषोने कोई निःस्वार्थी महापुरुषोनो कहेलो, सर्व जीवोना हितवालो, तत्त्वस्वरूपमय, सत्य धर्म होय ते मेळववानी खास जरुर छे. जुवो के पूर्वकालमां केटलाक महापुरुषोने तेवा "हिंसक" मार्गना प्रपंचथी तिरस्कार पण ययेलो जोवामां आवे छे, तेथी ते हिंसक प्रवृत्तिभोने छोडी दई पोते भक्तिमार्गनां अथवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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