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४ - जीव गुणाधिकार
जाता है अर्थात अभी अवग्रह हुआ ही था कि उपयोग अन्य विषय की ओर खिच गया । इसी प्रकार किसी को अवग्रह व ईहा होकर छूट जाते हैं, अवाय होने नहीं पाता । किसको अवग्रह हा अवाय ये तीनों हो जाने पर भी धारणा नहीं हो पाती । किसी को किसी समय धारणा सहित चारों ज्ञान भी हो जाते हैं; पर स्मृति का कभी काम ही नहीं पड़ता । इसी प्रकार किसी को स्मृति तो हो जाती है, पर प्रत्यभिज्ञान का अवसर प्राप्त नहीं होता । किसी को स्मृति व प्रत्यभिज्ञान हो जाने पर भी व्याप्ति या तर्क ज्ञान जागृत नहीं होता और किसी को व्याप्ति ज्ञान सहित उपरोक्त सर्वभेद हो जाते हैं । व्याप्ति हो जाने पर भी उसका अनुमान के लिए प्रयोग करे ही करे यह आवश्यक नहीं, पर कोई कोई कहीं कहीं उससे अनुमान भी कर लेता है ।
२- मध्य गुण पर्याय
इतनी बात अवश्य है कि आगे आगे के ज्ञान वालों को उससे पूर्व के सर्वज्ञान अवश्य होते हैं, क्योंकि पूर्व भेद के अभाव में अगला ज्ञान होना सम्भव नहीं । ऐसा नहीं हो सकता कि अवाय तो हो जाये और अवग्रह ईहा न हो । अवग्रह ब ईहा होने पर ही अवाय सम्भव है, और इसी प्रकार धारणा होने पर ही स्मृति प्रत्यभिज्ञान आदि होने सम्भव हैं ।
(५३) मति ज्ञान के विषयभूत पदार्थों के कितने भेद हैं ?
दो हैं - व्यक्त व अव्यक्त । ( अथवा अर्थ व व्यञ्जन ) (५४) अवग्रहादि ज्ञान दोनों ही प्रकार के पदार्थों में होते हैं या कैसे ? व्यक्त पदार्थों के अवग्रह आदि चारों होते हैं परन्तु अव्यक्त पदार्थ का केवल अवग्रह ही होता है ।
(५५) अर्थावग्रह ( व्यक्तावग्रह ) किसे कहते हैं ?
व्यक्त पदार्थ के अवग्रह को अर्थावग्रह कहते हैं (जैसे नेल द्वारा देखना )
(५६) व्यञ्जनावग्रह किसे कहते हैं ?
अव्यक्त पदार्थ के अवग्रह को व्यञ्जनावग्रह कहते हैं (जैसे