Book Title: Jain Siddhanta Sutra
Author(s): Kaushal
Publisher: Deshbhushanji Maharaj Trust

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Page 321
________________ ७-स्याद्वाद २६८ १-वस्तुस्वरूपाधिकार जिस विवक्षित पर्याय की सत्ता खोजनी हो उसके साथ 'का' का प्रयोग करना चाहिये और जिस दूसरी पर्याय के साथ उसकी भिन्नता देखनो है उसके साथ 'में' का प्रयोग करना चाहिये। जैसे - दही की सत्ता अपने से पूर्ववर्ती दूध की सत्ता में प्रागभाव (अनुत्पन्न) रूप से रहती है और दूध की सत्ता अपने से उत्तरवर्ती दही की सत्ता में ध्वंस (नष्ट) हुई रहती है। (४१) अन्यान्याभाव किसको कहते हैं ? पुद्गल द्रव्य की एक वर्तमान पर्याय में दूसरे पुद्गल की वर्त मान पर्याय के अभाव को अन्योन्याभाव कहते हैं। ४२. एक पुद्गल पर्याय में दूसरो पर्याय का अभाव क्या ? एक पुद्गल स्कन्ध से दूसरा पुद्गल स्कन्ध भिन्न हैं, जैसे--घटसे पट भिन्न है अथवा एक घट से दूसरा घट भिन्न है। (४३) अत्यन्ताभाव किसे कहते हैं ? एक द्रव्य में दूसरे द्रव्य के अभाव को अत्यन्ताभाव कहते हैं । ४४. एक द्रव्य में दूसरे द्रव्य का अभाव क्या ? लोक में जितने भी सत्ताभूत मौलिक द्रव्यों का अस्तित्व है, वे सब परस्पर भिन्न है, जैसे जीव से पुद्गल भिन्न है अथवा एक जीव से दूसरा जीव भिन्न है। ४५. अत्यन्ताभाव कहने से क्या समझे ? कोई भी दो द्रव्य मिलकर तीन काल में भी कभी एक नहीं हो सकते, उनकी सत्ता पृथक पृथक ही रहती है । द्रव्य क्षेत्र का फल व भाव चारों, प्रकार से भिन्न रहने को अत्यन्ताभाव कहते ४६. अन्योन्याभाव व अत्यन्ताभाव में क्या अन्तर है ? स्वरूप का सर्वदा पृथक बने रहना अत्यन्ताभाव है. यह बात छहों मूल द्रव्यों में पाई जाती है, पुद्गल की द्रव्य पर्यायों में नहीं, क्योंकि वे मूल द्रव्य नहीं हैं। वे हैं समान जातीय पर्याय रूप स्कन्ध जो अपने स्वरूप को बदल लेते हैं । जो आज घट

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