Book Title: Jain Siddhanta Sutra
Author(s): Kaushal
Publisher: Deshbhushanji Maharaj Trust

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Page 367
________________ ३४४ ३-नय अधिकार " जैसे-घर व धन आदि मेरा है, ऐसा कहना। ८७. अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनय किसको कहते हैं ? ... संश्लेश सम्बन्ध को प्राप्त भिन्न पदार्थों में एकता या अभेदो पचार करनेवाला अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनय है जैसे शरीर मेरा है, ऐसा कहना। ८८. निश्चयनय व सद्भत व्यवहार नय में क्या अन्तर है ? । निश्चय नय तत्स्वरूपता रूप से कथन करता है और सद्भूत - व्यवहार नय उस गुणवाला या गुणधारी अथवा इसमें यह * , गुण है, इस प्रकार से भेदोपचार कथन करता है। ८६. इन सर्व नयों में सप्तभंगी कैसे घटित होती है ? पदार्थ के सामान्य या विशेष अंगों में से नय किसी एक अंश को मुख्य करके कथन करता है और दूसरे अंश को उस समय गौण कर देता है । उसका यह गौण करना ही अनुक्त रूप से । अन्य धर्म का निषेध करना है। इस प्रकार प्रत्येक नय में विधि ... निषेध की प्रतीति होती है। यह विधि निषेध ही सातों भंगों ___में प्रथम व द्वितीय प्रधान भग हैं, जिनके सम्मेल से अगले पांच भग भी बन जाते हैं जैसे-निश्चय नय से जीव ज्ञानमयी ... ही है, ज्ञान से पृथक अर्थात व्यवहार रूप नहीं है । ६०. निश्चयनय और व्यवहारनय का समन्वय करो। निश्चय सामान्यांश ग्राही है, और व्यवहारनय विशेषांशग्राही है। पदार्थ युगपत सामान्य विशेषात्मक है । सामान्य के बिना विशेष और विशेष के बिना सामान्य आकाश पुष्पवत् असत् हैं। पदार्थ के स्वरूप में इन दोनों अंशों में से कोई भी मुख्य गौण नहीं है । दोनों अंग अपने रूप से सत्य है । इसी प्रकार इन दोनों अंशों को ग्रहण करने वाले ये दोनों नयें भले ही कथन क्रम के कारण मुख्य व गौण रूप से आगे पीछे वर्तते हों, परन्तु प्रमाण ज्ञान युगपत दोनों त्रयी हैं । निश्चय के । बिना व्यवहार और व्यवहार के बिना निश्चय दोनों आकाश

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