Book Title: Jain Siddhanta Sutra
Author(s): Kaushal
Publisher: Deshbhushanji Maharaj Trust

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Page 366
________________ ३४३ -नय-प्रमाण ३-नय अधिकार गुण में पर्याय का उपचार; एक पर्याय में दूसरी पर्याय का उपचार, पर्याय में गुण का उपचार, पर्याय में द्रव्य का उपचार; कारण में कार्य का उपचार, कार्य में कारण का उपचार आदि। ७६. व्यवहार नय के कितने भेद हैं ? दो हैं—सद्भूत और असद्भूत । ८०. सद्भूत व्यवहारनय किसको कहते हैं ? एक अखण्ड पदार्थ में गुण-गुणो अथवा पर्याय-पर्यायी रूप भेदोपचार करने को सद्भूत व्यवहारनय कहते हैं। जैसे-जीव में ज्ञान गुण है, ऐसा कहना भेदोपचार है। ८१. सद्भुत व्यवहार नय कितने प्रकार का है ? दो प्रकार का--शुद्ध सद्भूत व अशुद्ध सद्भूत । ८२. शुद्ध सद्भूत व्यवहारनय किसको कहते हैं ? शुद्ध गुण तथा शुद्धगुणी में अथवा शुद्ध पर्याय तथा शुद्ध पर्यायी में भेदोपचार करने को शुद्ध सद्भूत नय कहते हैं । जैसे-'जीव में ज्ञान गुण है' अथवा 'सिद्ध भगवान केवल ज्ञानधारी हैं।' ८३. अशुद्ध सद्भूत व्यवहारनय किसको कहते हैं ? अशुद्ध पर्याय व अशुद्ध पर्यायी में भेदोपचार करने वाला अशुद्ध सद्भूत व्यवहारनय है । जैसे-संसारी जीव रागद्वेष वाला होता है। यहां गुण गुणी भेद सम्भव नहीं क्योंकि गुण अशुद्ध नहीं होता। ८४. असद्भूत व्यवहारनय किसको कहते हैं ? अनेक भिन्न पदार्थों में अभेदापचार करनेवाला असद्भत व्यवहार नय है । जैसे-- घी का घड़ा' ऐसा कहना । ८५. असद्भूत व्यवहारनय कितने प्रकार का होता है ? दो प्रकार का-उपचरित असद्भूत और अनुपचरित असद्भूत । ८६. उपचरित असद्भूत व्यवहारनय किसको कहते हैं ? आकाश क्षेत्र में ही बिल्कुल पृथक पड़े हुए पदार्थों में एकता या अभेदोपचार करने वाला उपचरित असद्भूत व्यवहारनय है।

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