Book Title: Jain Siddhanta Sutra
Author(s): Kaushal
Publisher: Deshbhushanji Maharaj Trust

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Page 364
________________ ३४१ ३ - नय अधिकार पर्यायार्थिक है । एक समयवर्ती अर्थपर्याय का द्रव्य रूप से विवेचन करना इसका काम है । ८-नय-प्रमाण ६६. अशुद्ध पर्यायार्थिक नय किसको कहते हैं ? अशुद्ध या स्थूल व्यंजन पर्याय का कथन करनेवाला स्थूल ऋजु सुवनय अशुद्ध पर्यायार्थिक है । वर्तमान काली अवस्था का ही विवेचन करना इसका काम है । ६७. स्थूल व्यञ्जन पर्यायग्राही होने से व्यवहार व ऋजुसूत्र दोनों को ही समान क्यों न कहा ? नहीं, क्योंकि व्यवहार नय उन भेदों को पृथक-पृथक पदार्थ नहीं मानता उन भेदों द्वारा अथवा विश्लेषण द्वारा संग्रहनय के सामान्य का ही स्पष्टी करता है, जब कि स्थूल ऋजुसूत्र उसके किसी एक भेद को स्वतंत्र द्रव्य या सत् मानकर बात करता है । ( ३ अध्यात्म पद्धति) ६५. अध्यात्म पद्धति किसको कहते हैं ? जिसमें पदार्थों की शुद्धता व अशुद्धता दर्शाकर उनमें हेयोपादेय बुद्धि उत्पन्न कराना इष्ट हो उसे अध्यात्म पद्धति कहते हैं । ६६. अध्यात्म पद्धति से नय का क्या लक्षण है ? जो ज्ञान वस्तु के एक अंश को ग्रहण करे उसको नय कहते हैं । ७०. वस्तु के कितने श्रंश प्रधान हैं ? दो सामान्य व विशेष अथवा अभेद व भेद अथवा द्रव्य व पर्याय । सामान्य, अभेद, द्रव्य एकार्थवाची हैं और विशेष भेद व पर्याय एकार्थवाची हैं । ७१. नय के कितने भेद हैं ? दो भेद हैं - निश्चय व व्यवहार । ७२. निश्चय नय किसको कहते हैं ? जो समस्त द्रव्य को अभेद रूप से ग्रहण करे, अर्थात उसमें गुण गुणी भेद न करके गुणों व पर्यायों के साथ तादात्म्य भाव

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