Book Title: Jain Siddhanta Sutra
Author(s): Kaushal
Publisher: Deshbhushanji Maharaj Trust

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Page 359
________________ -नय-प्रमाण ३-नय अधिकार ४२. द्रव्य पर्याय नैगमनय किसको कहते हैं ? सामान्य धर्म पर से विशेष का और विशेष धर्म पर से सामान्य का निर्णय करने वाला 'द्रव्य पर्याय नैगमनय' है। जैसे-जो जीव है वही ज्ञान है और जो ज्ञान है वही जीव है। ४३. संग्रहनय किसको कहते हैं ? अपनी जाति का विरोध न करके अनेक विषयों का एक रूप से जो ग्रहण करे उसको ‘संग्रहनय' कहते हैं । जैसे-एक 'सत्' कहने से सभी द्रव्यों का युगपत ग्रहण हो जाता है; अथवा 'जीव' कहने से चारों जाति के सभी जीवों का ग्रहण हो जाता है। ४४. संग्रहनय कितने प्रकार का है ? दो प्रकार का-शुद्ध संग्रह और अशुद्ध संग्रह । ४५. शुद्ध संग्रहनय किसको कहते हैं ? जो महा सत्ता को एक रूप से ग्रहण करे। जैसे-लोक में एक ___सत्' है और कुछ नहीं। ४६. अशुद्ध संग्रहनय किसको कहते हैं ? जो अवान्तर सत्ता को एक रूप से ग्रहण करे । जैसे-जीव एक है, पुद्गल एक है, संसारी जीव एक है, इत्यादि । (४७) महासत्ता किसको कहते हैं ? समस्त पदार्थों के अस्तित्व को ग्रहण करने वाली सत्ता को महा सत्ता कहते हैं । (महा सत्ता की अपेक्षा जीव व अजीव सब सन्मात्र स्वरूप हैं)। (४८) अवान्तर सत्ता किसको कहते हैं ? किसी विवक्षित पदार्थ के अस्तित्व को अवान्तर सत्ता कहते हैं। जैसे-जीव की सत्ता में केवल जीव द्रव्य ही आते हैं अजीव नहीं। ४६. व्यवहार नय किसको कहते हैं ? जो संग्रहनय से ग्रहण किये पदार्थ को विधिपूर्वक भेद करे, सो

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