Book Title: Jain Siddhanta Sutra
Author(s): Kaushal
Publisher: Deshbhushanji Maharaj Trust

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Page 355
________________ ८-नय-प्रमाण ३३२ ३-नय अधिकार प्रकार यदि वाचक शब्द की धातु विभक्ति कारक लिंग आदि के सम्बन्ध में विचारा अथवा बोला या लिखा गया हो तो वे सब विचार या शब्द व्यंजन नय या शब्द नय कहलायेंगे। २१. ज्ञाननय के कितने भेद हैं ? केवल एक--गम नय। २२. अर्थनय के कितने भेद हैं ? दो-द्रव्यार्थिक व पर्यायाथिक । २३. अर्थनय के दो भेदों का कारण क्या ? क्योंकि अर्थात्मक पदार्थ द्रव्य गुण पर्याय युक्त होता है। २४. द्रव्याथिक नय किसको कहते हैं ? पर्याय अर्थात विशेषों को गौण करके जो ज्ञान पदार्थ के द्रव्यांश या सामान्यांश को ग्रहण करे उसे द्रव्याथिक नय कहते हैं जैसे पदार्थ को एक व नित्य कहना। २५. द्रव्याथिक नय कितने प्रकार की है ? तीन प्रकार की---नैगम नय, संग्रह नय, व्यवहार नय। अथवा दो प्रकार की-शुद्ध द्रव्यार्थिक व अशुद्ध द्रव्याथिक । २६. पर्यायाथिक नय किसको कहते हैं ? द्रव्य अर्थात सामान्य को गौण करके जो ज्ञान पदार्थ के पयांयांश को अर्थात विशेषांक को ग्रहण करे उसे पर्यायाथिक नय कहते हैं; जैसे पदार्थ को अनेक व अनित्य कहना। २७. पर्यायाथिक नय के कितने भेद हैं ? केवण एक ऋज सूत्र नय । अथवा दो- शुद्ध पर्यायाथिक व अशुद्ध पर्यायाथिक । अथवा चार-ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ व एवंभूत । २८. द्रव्याथिक व पर्यायाथिक के साथ गुणाथिक क्यों नहीं कही? द्रव्याथिक नय पदार्थ के सामान्यांश को ग्रहण करता है पर्यायाथिक नय उसके विशेषांश को। सामान्य व विशेष में सर्व पदार्थ समाप्त हो जाता है । जिस प्रकार पर्यायाथिक नय क्रम

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