Book Title: Jain Siddhanta Sutra
Author(s): Kaushal
Publisher: Deshbhushanji Maharaj Trust

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Page 354
________________ ३३१ ८-नय-प्रमाण ३-नय अधिकार १५. सत् पदार्थ तो सम्भव है पर अनुत्पन्न व विनष्ट कैसे सम्भव अर्थक्रियाकारी पदार्थ के रूप में भले उसका बाहर में अस्तित्व न हो , परन्तु ज्ञान में उसका अस्तित्व अवश्य है। जैसे आपके ज्ञान में आपका मृत पिता सत् है । १६. पदार्थ बड़ा या ज्ञान ? पदार्थ की अपेक्षा ज्ञान बड़ा है, क्योंकि पदार्थ तो वर्तमान पर्याय युक्त ही प्रतीति में आता है, पर ज्ञान उसकी त्रिकाली पर्याय युक्त होता है। १७. ज्ञाननय किसको कहते हैं ? ज्ञानात्मक पदार्थ के सम्बन्ध में विचार करने अथवा कहने वाली नय 'ज्ञाननय' है। १८. अर्थनय किसको कहते हैं ? अर्थात्मक पदार्थ के सम्बन्ध में विचार करने अथवा कहने वाली नय 'अर्थनय है। १६. व्यञ्जन नय किसको कहते हैं ? व्यञ्जनात्मक पदार्थ के सम्बन्ध में विचार करने अथवा कहने वाली नय 'व्यञ्जन नय' है । शब्दात्म होने से इसे 'शब्दनय' भी कह देते हैं। २०. ज्ञान में जाना गया सो ज्ञान नय और शब्द में बोला या लिखा गया सो शब्द नय; तीसरे अर्थनय को क्या आवश्यकता ? ऐसा नहीं है, तुम नय के अर्थ को नहीं समझे । नय तो सर्वत्र ज्ञानात्मक ही होता है । ये भेद तो ज्ञेय की अपेक्षा से हैं । ज्ञेय तीन प्रकार के हैं-ज्ञान में ज्ञेय का आकार, असली ज्ञेय पदार्थ और ज्ञेय पदार्थ का वाचक शब्द । यदि ज्ञेयाकार को लक्ष्य करके विचारा या बोला गया हो या लिखा गया हो तो वे सब विचार या शब्द ज्ञान नय कहलायेंगे । यदि असली अर्थात्मक पदार्थ को लक्ष्य करके विचार अथवा बोला या लिखा गया है तो वे सब विचार और शब्द अर्थनय कहलायेंगे । और इसी

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