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२-द्रव्यगुण पर्याय १२६ ४-जीव गुणाधिकार ११४. अप्रतिपाती ज्ञान किसे कहते हैं ?
उत्पन्न होने के पश्चात केवल ज्ञान होने तक जो न छूटे उसे
अप्रतिपाती कहते हैं। ११५. देशावधि आदि में कौन प्रतिपाती और कौन अप्रतिपाती :
देशावधि प्रतिपाती है और परमावधि व सर्वावधि अप्रतिपाती
ही। ११६. तो क्या देशावधि वाले को केवल ज्ञान नहीं होता?
कोई नियम नहीं, हो भी जाये और न भी होय । पर परमावधि व सर्वावधि वाले को नियम से होता है।
(६. मनः पर्यय ज्ञान) (११७) मनः पर्यय ज्ञान किसे कहते हैं ?
द्रव्य क्षेत्र काल व भाव की मर्यादा लिये हुए जो दूसरे के मन
में तिष्ठते रूपी पदार्थों को स्पष्ट जाने। ११८. दूसरे के मन में तिष्ठते पदार्थ क्या ? ___ मन द्वारा जिस विषय का स्मरण या विचार किया जाता है,
वही मन में स्थित पदार्थ है । ज्ञान में पड़ा ज्ञेय का आकार ही
इस का तात्पर्य है। ११६. मन में स्थित रूपी पदार्थ से क्या समझे ?
यदि मन में स्थित वह ज्ञेयाकार पुद्गल का है अथवा तन्निमित्तक जीव के अशुद्ध भावों का है, अर्थात यदि मन इन चीजों का विचार कर रहा है, तब तो उसमें मनः पर्यय का व्यापार चल सकता है अन्यथा नहीं। वीतरागी जनों के मन में स्थिति साक्षी रूप साम्य भाव अथवा ज्ञाता ज्ञान ज्ञेय की त्रिपुटी से रहित आत्म प्रकाश में रमणता का भाव, वह नहीं
जान सकता। १२०. मनः पर्यय ज्ञान भूत भविष्यत को भी विषय करता है ?
हां, किसी व्यक्ति ने आज से कुछ काल पहले क्या विचारा या जाना था, अब क्या विचार रहा है और आगे क्या