Book Title: Jain Siddhanta Sutra
Author(s): Kaushal
Publisher: Deshbhushanji Maharaj Trust

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Page 318
________________ २५. ७-- स्याद्वाद २६५ १-वस्तु स्वरूपाधिकार (२ स्व चतुष्टय) २०. पदार्थ में सामान्य विशेष किस रूप में देखे जाते हैं ? स्वरूप चतुष्टय के रूप में। २१. स्वरूप चतुष्टय किसका कहते हैं ? द्रव्य के स्वभाविक चार अंशों को स्वरूप चतुष्टय कहते हैं। २२. स्वरूप चतुष्टय कौन से हैं ? चार हैं---द्रव्य, क्षेत्र, काल भाव । २३. द्रव्य किसको कहते हैं ? गुण व पर्यायों के आश्रय या आधार को द्रव्य कहते हैं। २४. क्षेत्र किसको कहते हैं ? द्रव्य के प्रदेशों को अथवा उसके आकार को द्रव्य का स्वक्षेत्र कहते हैं। काल किसको कहते हैं ? द्रव्य व गुण की अपनी अपनी पर्याय उस उसका स्वकाल है। स्वभाव किसको कहते हैं ? द्रव्य के गुणों को उसका स्व-भाव कहते हैं । । २७. चतुष्टय के कारण द्रव्य के चार खण्ड हो जायेंगे ? नहीं होगा, क्योंकि ये चार विकल्प केवल द्रव्य को विशेष प्रकार से जानने के लिये हैं, उसका विभाग करने के लिये नहीं । ज्ञान द्वारा द्रव्य में चार विशेष देखे जा सकते हैं। द्रव्य की सिद्धि में इन चार बातों का क्या स्थान ? द्रव्य अवश्य प्रदेशात्मक कुछ होना चाहिये, अन्यथा उसमें गुण अथवा पर्याय आश्रय नहीं पा सकती और गुण पर्याय के अभाव में उसकी सिद्धि नहीं हो सकती। द्रव्य अवश्य पर्यायात्मक होना चाहिये अन्यथा उसमें अर्थ क्रिया नहीं हो सकती, और अर्थ क्रिया के अभाव में उसकी सिद्धि नहीं हो सकती। द्रव्य अवश्य गुणात्मक होना चाहिये अन्यथा उसका कुछ भी स्वभाव नहीं हो सकता और स्वभाव के अभाव में उसकी सिद्धि नहीं हो सकती। इन्हीं चार विकल्पों से उसके द्रव्य क्षेत्र काल व भाव जाने जाते हैं। २८.

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