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३-कर्म सिद्धान्त
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१-बन्धाधिकार आंख के स्थान पर आंख और नाक के स्थान पर नाक हो)
उसे निर्माण नामकर्म कहते हैं । (८१) बन्धन नाम कर्म किसे कहते हैं ? ।
जिस कर्म के उदय से औदारिकादि शरीरों के परमाणु परस्पर बन्ध को प्राप्त हो (बिखर कर पृथक पृथक न हो जायें) उसे
बन्धन नाम कर्म कहते हैं। (८२) संघात नाम कर्म किसे कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से औदारिकादि शरीर के परमाणु छिद्र
रहित एकता को प्राप्त हों। (८३) संस्थान नाम कर्म किसे कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से शरीर की आकृति बने उसे संस्थान नाम
कर्म कहते हैं। (८४) समचतुरस्त्र संस्थान किसे कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से शरीर की शकल ऊपर नीचे तथा बीच
में समभाग से (Proportional) बने। (८५) न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थान किसे कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर बड़ के वृक्ष की तरह का हो अर्थात जिसके नाभि से नीचे के अंग छोटे और ऊपर
के अंग बड़े हों। (८६) स्वाति संस्थान किसको कहते हैं ?
न्यग्रोध परिमण्डल से बिल्कुल विपरीत लक्षण को स्वाति संस्थान कहते हैं जैसे सर्प की नाभी। (अर्थात नीचे के अंग
बड़े और ऊपर के छोटे हों) । (८७) कुब्जक संस्थान किसे कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से शरीर कुबड़ा हो । (८८) वामन संस्थान किसे कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से बौना शरीर हो ।