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"जैनसिद्धांतसंग्रह।
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देव दुंदुभिके सदा, बाजे बजे अकाश ॥ १०॥ विन अक्षर इच्छारहित, रुचिर दिव्यध्वनि होय । । । सुन नर पशु समझें सवै, संशय रहे न कोय ॥ २१ ॥ वरसत सुर तरुके कुसुम, गुंजत अलि चहुंओर । । फैलत सुयश सुवासना, हरषत भवि सब ठौर ॥ १२ ॥
समुंद वाघ अरु रोग अहि, अर्गल बंधु संग्राम । . विघ्न विषम सब ही रै, सुमरत ही मिन नाम ॥२३॥
श्रीपाल चंडाल पुनि, अंजन भील कुमार । हाथी हरि अहि सब तरे, आज हमारी वार ॥ २॥ बुधजन यह विनती करै, हाथ जोड़ शिर नाय । जबलों शिव नहि रहे तुव, भक्ति हृदय अधिकाय ॥ १५॥
वीतराग सर्वज्ञ अरु, हितोपदेशक नाथ ।
दोष नहीं छयालीस प्रभु, तुम्हें नमाऊ माथ ॥१॥ दीन दयाल दयानिधि खामिन् भक्तिनिको दुखहारि तुही है। तू सब ज्ञायकं लोक अलोकरु ज्ञान प्रकाशनहार तुही है। न्तु भविकंन विकाशन भानुभवोदधि तारनहार तुही है। "मूल " तुही शिव मारग साधन आपति नाशनहार तुही है ॥R
कवित्त-जीवन आनित्य अरु लक्ष्मी है चंचल रूं यौवन • अथिर एक छिनमें विलायगो । याहि पाय रे अज्ञान कर काहे
अभिमान धर्म हिय धार नहिं सर्व व्यर्थ जायगो ॥ कर कछु उपकार जगतमें येही सार मौका यह बार बार हाथ नहिं आयगो । प्रेम हिय धार अरु सत्यका प्रचार कर दया."मूद" धार नहिं पीछे पछतायगो ।