Book Title: Jain Siddhanta Sangraha
Author(s): Sadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publisher: Sadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar

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Page 388
________________ जैनसिद्धांतसंग्रह। [४२७ जीव बचैया तुमही तो हो । अघव्याही राजुलको छोडी गिरके चढ़या तुमही तो हो । मात पिताकी कही न मानी तपके तपैया तुमही तो हो । राजुल रानी मन अकृशानी धीयवधैया तुमही तो हो ॥२॥ पार्सनाथ भगवान कमठके मान घटैया तुमही तो हो । जरत मगनसे नाग नागनीके उवरैया तुमही तो हो। -महावीर निन धीर. बीर भव पीर हरैया तुमही तो हो । चौबीसों भगवान महो भयकंद मिटैया तुमही तो हो । जैन धर्म प्रचार चलाया सृष्टि तरैया तुमही वो हो । अनंगनंते प्राणी भवसे पार करैया तुम ही तो हो ॥ मंत्र महान महान जगतमें या बतलैया तुमही तो हो ।णमोकार इस जगमें स्वामीजू पचरैया तुमही तो हो ॥३॥ कोड़ा. कोड़ी यही मंत्रसे पार तरैया तुमही तो हो । मागे मोल गये जप तपकर स्वर्ग दिवैया तुमही तो हो । भव सीझत निरधार प्रभू माधार वदैया तुमही तो हो। देस विदेस विहार कीन उपदेश करैया तुम ही तो हो ॥ शिव मारग दर्शाया तुमने धर्म बतैया तुमही.तो हो। पंथ कगाकर जग जीवनपर करुणा धेरैमा तुमही तोहो ॥ णमोकारका नोका करके मंत्र वतैया तुमही तोहो। जिन उद्धारक त्रिभुवन नारक रंक रखैया तुमही तो हो ॥॥ दोष मठारा त्यागके वारागुणके घरैया तुमही तो हो । मतिशय चौतिस दीखें न्यारे कर्म खिपैया तुमही तोहो ॥ कुमत रही जग छायः नवे तुम सुमत वतैया तुमही तोहो । कुमति नार पाखंड किया परचंड हटैया तुमही तोहो ॥ जग अज्ञान मिटाया तुमनें ज्ञान दिवया तुमही तो हो । तीर्थकर पदवीके धारी ज्ञान उपैया तुमही वो हो।नवर परी भीर भक्तनपैवाह गहेया तुमही वो हो। महाघोर

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