Book Title: Jain Siddhanta Sangraha
Author(s): Sadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publisher: Sadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar

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Page 389
________________ ४२८] जनसिद्धांतसंग्रह। उपसर्ग निताये छिनरके रखेया तुमही तोहो ॥५॥ कपी सिखरंसम्मेदके ऊपर मंत्र दिया तुमही वोहो| चम्पापुरमें ग्वालि वालको सेट करेया नुमही तोहो ॥ वैल नीव संघोष सुग्रीव ने भूप बनैया तुमही तोहो ॥ चहलेमें हथनी फंसी वाह उवरैया तुमही तोहो॥ . मानतुंग उपसर्ग बचाये वेड़ी कटैया तुमही तो हो । सीता प्रवसी अगनकुंडमें नीर करैया तुमही तोहो । मनोरमा पर विपदा भारी सील रखैया तुमही तो हो। सती अंगना नृत्य करत में स्वर्गदिवैया तुमही तो हो ॥६॥ अषम अंजना व्यसन कीनंपर चोर सरया तुमही तो हो । स्वान जीवको सेठ संबोधो पेन रखया तुमही तो हो । महाकुटिल चडाल मीनकू स्वर्ग दिवया तुमही तो हो । सती द्रोपदी धातु द्वीपमें पेन रखैया तुमही तो हो ॥ कोटीमट श्रीपाक सेठके कुट कटैया तुमही तो हो । धर्मचक्रके फलसे काया स्वर्ण करैया तुम ही तो हो ॥ सखा सातसौकी मसाबसन व्याध हटैया तुमही तो हो । जो यह मंत्र जपे तन मनसे पार करैया तुम ही तो हो || तन मनसे नर जो कोई ध्यावे ताह रैया तुमही तो हो । तेरा तीन हुए सब जैनी घोर्य वयातुमही तो हो। पांचों मेरे सोय अज्ञानी इन्है नगैया तुमही तो हो । घोरघटा मिध्यात छाय रव ताह हटैया तुमही तो हो। मूलत भटकत फिरत भुकानों राह लगैया तुमही तो हो || भामहं वारी नाथ हमारी विनय सुनैया तुमही तो हो ॥ यानगमे नहिं कोई सुनया वाह गहैया तुमही तो हो। फूलचंद जिन रंक धर्मका वंक दिया तुपही को हो ॥६॥ चोवीसों मिनरान प्रमूजी मरन सुनैया तुमही तो हो । भव सागर बिच नरकी नैया पार, लगैया, तुमही तो हो ॥

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