Book Title: Jain Siddhanta Sangraha
Author(s): Sadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publisher: Sadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar

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Page 399
________________ M Nam ४३८] जैन सिद्धांतसंग्रह। हरि मेरु मुदर्शन नाय, निनवर न्हौन करें। हम पून इतगुण गाय मंगल मोद घर ॥१॥ ॐ ह्रीं मष्टादश दोषरहित षट्चत्वारिंशदगुणसहित श्रीमदइत्परमेष्टिने कामबाण विध्वंशनाय पुप्पं निवपामीति स्वाहा। फेनी गोझा पकवान, सुंदर ले ताजे।। तुम मम धरों गुण खान, रोग छुधा भाजे । हरि मेक सुदर्शन जाय, मिनवर न्हौन करें। हम पूमैं इस गुण गाय, मंगल मोद धरै ॥५॥ ॐ ह्रीं मप्टादशदोपहित पट्चत्वारिंशद्गुणसहित श्रीमदईस्परमेष्टिने क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य निर्वपामीति स्वाहा। कंचन मय दीपक वार, तुम भागे लाऊ । मम तिमिरमोह छैकार, केवल पद पाउं॥ हरि मेरु सुदर्शन नाय, मिनवर न्हौन करें। हम पुनै इत गुण गाय, मंगळ मोद घरे ॥६॥ ॐ ही महादशदोषरहित षट्चत्वारिंशाणसहित श्रीमदहत्परमेष्टिने मोहधिकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा । कृष्णागर तगरु कपुर, चूरसुगंध करों। तुम आगे खेवत मूर, वसुविष कर्म हरों। हरि मेरु सुदरशन नाय, जिनवर न्हौन करें। हम पूर्फ इत गुण गाय, मङ्गळ मोद धेरै ॥ ७॥ ॐ ही मष्टादशदोषरहित पटचत्वारिंशद्गुण सहित श्रीमद ईत्परमेष्टिने भष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा । श्रीफल मंगरं मनार, खारक थार मरों।

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